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________________ (४६) राजाको साक्षात् कामदेव ही बना दिया है, और इस गद्यमें केवल वीररस, तथा उपमाका वर्णन किया है। अब देखिये जैन कवीश्वर श्री हरिश्चन्द्र और श्री कविसिंह श्री. वादीमसिंह जिनक सांस्कारिक नाम अजितसेन था, लेकिन पंडितोंने इनका प्रचुर पाण्डित्य देखकर "वादीमसिंह यह नाम रखखा । इनकी रचना चातुर्य से विद्वत्ता, धर्मज्ञनादि गुगों से प्रसन्न हो जब पण्डितोंने 'वादी सिंह ये नाम रखा तो न जाने इनकी कितनी विद्वत्ता होगी । हम यहां पर श्री हरिचन्द्र कविके से मिलान करते हैं, जिससे पाठक समझ जायेंगे कि किसकी गद्य रचना में सौन्दर्य तथा पदलालित्य, अर्थगौरव है । वकिल संदन व आनन्दितसुमनोगणः, अन्तक इव महिषीसमधिष्ठतः, वरुण इवाशान्तरक्षणः, पवन इव पद्मामोदरुचिरः, हर इव महासेनानुयातः, नारायण देव वराहवपुष्कलोद योद्धृत धरणीवलप सरोज सम्भव इव सकलसारस्वतामरसानुभूतिः, भद्रगुणोऽप्यनागः विबुधपतिरपि कुलीनः सुवर्णधरोप्यनादित्यागः, सरसार्थपोषक वचनोऽपि नरसार्थपोषकवचनः आगमाल्याश्रितोऽपि नागमाल्याश्रितः, एतादृशः सत्यन्धरनाम राजा । सत्यन्धर अर्थात- महाकवि हरिश्चन्द्र रानाका वर्णन इस शैली से करते हैं कि इन्द्रकी तरह देवता समूहको और (शब्दश्लेपसे बतलाते हैं) विद्वज्जनोंको प्रसन्न करता है, तथा देवताओंको ही प्रसन्न करता है, अतः इस राजामें इन्द्राधिक्य द्योतन किया, इतने ही वाक्य में अतिशयोक्ति, श्लेष, उपमा, उपमेय, शब्द संदर्भ, अर्थ गौरव कितना है? यह आप स्वयं विचारें । अत्र आगे चलिये । कालकी तरह महिषीसे युक्त है, यहाँपर भी वही बात हैं, अर्थात् राजा. महिपी - रानी, और काल महिषी-युक्त है । वहगकी तरह दिशाओंको रक्षण करनेवाला है, अर्थात् वरुण देवताकी तरह है तो वरुण दिशाओंकी रक्षा करता है. और आशाओं यानी इच्छाओंको अन पर्यंत रक्षा करता है । वायुकी तरह कमलकी सुगं वे से युक्त है, अर्थात् पद्मकी आमोद सुगंधिसे रुचिर है और, यह पद्मा-रक्ष्वीसे युक्त है। महादेवकी तरह महासेन से अनुयात है, अर्थात् महादेव, अपने पुत्र महासेन कार्त्तिकेय से युक्त हैं, और राजा महासेना, अर्थात महती सेना से अनुगात हैं। श्री कृष्णकी तरह प्रथ्वी को धारण करनेवाला है, अर्थात् श्री कृष्णने वराहावतार धारण करके पृथ्वी का उद्धार किया है, और यह राजा, वराहपुष्कलोदय-भत श्रेष्ठ युद्धमें पुष्कर विशेष उदयसे धरणीवलय को धारण किया है । इत्यादि, देखिये किस चतुरता बुद्धिमत्ता से दोनों पक्ष पाते हुये, रचना, सौंदर्य, पदलालित्य, उपमा, उपमेय, विरोध, अतिशयोक्त प्रतिकादि अलंकारोंमें कैसी
SR No.010486
Book TitleShaddravya ki Avashyakata va Siddhi aur Jain Sahitya ka Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMathuradas Pt, Ajit Kumar, Others
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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