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________________ ६८ संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा करके यह वृत्ति वनाई है। अपनी वृत्ति का महत्त्व उन्होने निम्नलिखित शब्दो मे व्यक्त किया है - તસ્યાતિમહતી વૃત્તિ સહૃય નીયમી सम्पूर्णलक्षणा वृत्तिर्वक्ष्यते यक्षवर्मणा ।। વાતાવરણનોગચાડવૃત્તેિરખ્યાવૃત્તિના ! ममस्त वाड्मय वेत्ति वर्षणकन निश्चयात् ।। अमोधवृत्ति नामक अत्यन्त विस्तृत वृत्ति को सक्षिप्त करके यह अल्पकाय किन्तु सम्पूर्ण लक्षण युक्त वृत्ति को यक्षवर्मा कहता है । वालक और स्त्री जन भी इस वृत्ति के अभ्यास से एक वर्ष मे निश्चय ही सम्पूर्ण वाड्मय को जान लेता है। यक्षवर्मा के विषय में अन्य जानकारी नहीं मिलती। प्रभाचन्द्रकृत शाकटायन न्यास माधवीयधातुवृत्ति (१४वी शती) मे प्रभाचन्द्र कृत शाकटायनन्यास का उल्लेख है । इसके मात्र दो अध्याय उपलब्ध होते है । ये प्रभाचन्द्र प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र के रचयिता प्रमाचन्द्र से भिन्न व्यक्ति है, ऐसा डाक्टर महेन्द्र कुमार जी का मत है। ___माधवीयवृत्ति मे अमोघ विस्तर नामक एक अन्य टीका का भी उल्लेख है किन्तु इसके विषय मे अन्य विवरण नहीं मिलता। भावसेन नैवेद्य ने भी शाकटायन पर एक टीका ग्रन्थ लिखा था। કિસી મનાત નેવને શાદાયનત રળિી નામ ટીના નિવી! डा० बुहलर ने एक अन्य अपूर्ण टीका का उल्लेख किया है जिसका नाम तथा लेखक अज्ञात है। (इडिया आफिस केटलाग न० ५०४३) ___ अजितसेन (१२वी शती) ने चिन्तामणि के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए चिन्तामणिप्रकाशिका, मगारस ने चिन्तामणि प्रतिपद तथा समन्तभद्र ने चिन्तामणिविषमपदटीका लिखी। एक अन्य अपूर्णचिन्तामणिवृत्ति की प्रति इडिया आफिस लायनेरी (५०४७) मे उपलब्ध है। रूपसिद्धि द्रविडसघ के आचार्य मुनि दयापाल ने शाकटायन पर एक सक्षिप्त टीका रू५सिद्धि नाम से लिखी। श्रवणवेलगोल के ५४वे शिलालेख मे इनके विषय मे कहा गया है कि वे वादिराज के सधर्मा थे। उनके गुरु का नाम मतिसागर था। गणरत्न महोदधि गोविन्दमूरि के शिष्य वर्धमानसूरि नामक श्वेताम्बर आचार्य ने शाकटायन के
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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