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________________ संस्कृत के जैन वैयाकरण एक मूल्याकन ६५ गण-धातुपाठयोगेन धातून लिंगानुशासने लिंगतम् । औणादिकानुणादी शे५ नि शेपमन वृत्तौ विद्यात् । अर्थात् गणपाठ, धातुपाठ, लिंगानुशासन और उणादि के अतिरिक्त इस वृत्ति मे सभी विषय वर्णित है। ___अमोधवृत्ति की एक अन्य विशेषता इसका लिंगानुशासन है । प्रथम अध्याय के द्वितीय पाद के प्रथम सूत्र "नपो चो ह्रस्व" के उपरान्त लिंगानुशासन दिया गया है। हेमचन्द्र ने शाकटायन की इस पद्धति को अपनी बृहद्वृत्ति मे अपनाया है। सून १।१।२६ के बाद उन्होने लिंगानुशासन दिया है। शाकटायन मे उणादि प्रकरण नही है। हेमचन्द्र ने अपनी वृत्ति मे उणादि प्रकार सूत्र ५।२।६२ के बाद दिया है। शाकटायन ने अमोधवृत्ति मे धातु पा6 के अन्तर्गत सभी नव धातु गणो को गिनाया है । यथा १ अदादि (४।३।२१) २ वादि (४।३।२१) ३ दिवादि (४१३१२२) ४ स्वादि (४।३।२८) ५ तुदादि (४।३।३२) ६ रुधादि (४।३।३४) ७ तनादि (४।३।३३) ८ ऋयादि (४।३।३०) ६ चुरादि (४११७) अमोघवृत्ति मे मान एधादि धातुगण नहीं है जो शाकटायन का प्रथम धातुपा० है। शाकटायन ने काशिका की पद्धति पर अमोधवृत्ति का निर्माण किया है। कहीकही शकिटायन ने भी वही उदाहरण दिये है जो काशिकाकार ने बृहद्वृत्ति मे दिये हैं। यथा १ शाकटायन सून ११४।३७ की वृत्ति मे किरातार्जुनीय का 'सशय कणादिषु तिष्ठते य ।' उदाहरण दिया है। यही उदाहरण पाणिनि सून १।३।२३ की काशिका मे दिया गया है। २ शाकटायन मूत्र ३।१।१६६ की वृत्ति मे निम्नलिखित उदाहरण दिये गये , "भद्रबाहुना प्रोक्तानि भद्रवाहाण्युत्तराध्ययनानि, याज्ञवल्केन प्रोक्तानि याज्ञवल्कानि ब्राह्मणानि, पाणिना श्रोक्त पाणिनीयम्, आपिशलिना प्रोक्तमापिशलम्, काशकृस्तिना प्रोक्त काशकृत्स्नम्।"
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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