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________________ आचार्य श्री कालूगणी व्यक्तित्व एव कृतित्व ३३ के अतिथि निवास मे ले गए थे। वहाँ श्री चौयमलजी मुनि भी उपस्थित थे और मेरे से लघु सिद्धान्त कौमुदी के प्रश्न पूछे गये थे। उस समय मुझे स्मरण है कि किसी प्रसग मे श्री रघुनन्दन जी ने अपने श्लोको मे से "श्रावृत किं न जानीते मिष्ट वस्तु पिपीलिका" यह पद सुनाकर मुझे मुग्ध कर दिया था । श्री रघुनन्दनजी अपनी आशुकवित्व-शक्ति प्रदर्शित करने के लिए श्री पूज्यजी महाराज की सेवा मे पधारे थे और वही उन्होंने निर्वाध रूप से श्री कालगणीजी की प्रशस्ति मे १०० श्लोक सुनाये थे।" बीकानेर, २०-६-७६ [डॉ० छगनलालजी शास्त्री को लिखे गए पन से] उसके प्रथम अध्येता थे मुनि भीमराजजी, मुनि सोहनलालजी (चूरू), मुनि कानमलजी और मुनि नथमलजी (वागोर)। ७ कालूगणी के एक विशिष्ट शिष्य । ८ पडितजी का यह श्लोक महाकवि कालिदास के निम्नाकित श्लोक की छाया है पमिद मम दक्षिणहस्ते, वामकरे लसदुत्पलमेतत् । भूहि किमिच्छसि पङ्कजनेने । कशनालमकानालम् ॥ ६ फनीरामजी पाठिया आदि । १० गोम्मटसार, जीवकाण्ड, विचार ६ । ६२६.६३१ । ११ यह घटना 'चतराजी का गुडा' की है। १२ वृहत्कल्प सून १४७ कप्पइ निगयाण वा निगयीण वा पुरत्यिमेण जाव अगमगहाम्रो एत्तए, पचत्यिमेण जाव थूणाविसयानो एत्तए, दक्षिणेण जाव कोसम्वीनो एत्तए, उत्तरेण जाव कुणाल विमयानो एत्तए, एयावया कप्प३, एयावयाव पारिए खेत्ते, नो से कप्प६ एत्तो वाहि, तेण पर जत्य नाण दसणचरित्ताइ उस्सप्पति । श्रीमता वद्य -वैद्याना, वारीन्द्राणा यशस्विनाम् । लक्ष्मी रामाह्व साधूना, सेवायामिति तन्यते ॥ १ ॥ साम्प्रत श्री जिनाचार्य, कालूरामाभिधो महान् । पीड्यते कृण् साध्येन, रोगणकेन भूरिश ॥ २ ॥ चिकित्सा जायतेऽस्माक, यथावण्यास्तसमता । तथापि कमशो लाभो, विशेपो न विलोक्यते ।। ३ ॥ लिख्यते रोग नामापि, निर्णा- यन्मया स्वत । लक्षणान्यपि पश्यन्ते, कार्या निर्धारणा बुध ॥ १ ॥ कुक्षेराध्मानमाटोप, शोथ पादकरस्य च। इत्यादि लक्षणं स्पष्टशयिते ह्य दरामय ।। ५ ।। मन्दोऽग्नि ततेऽनल्पो ऽनल्पकालसमुद्भव । सपामिति कष्टाना, प्रारम्भो दृश्यते यत ॥ ६ ॥ વૃષ્યતે ज्वरवैषम्यमेकाधिकशताकगम् । शुष्ककासो विशेषेण, पूर्वराने च बाधते ।। ७ ।। १३
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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