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________________ ४५८ मस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा सपल्लवमुखपूर्ण पुन्म (१६१८३), शकुन (५४।६६), दक्षिणावर्तनिधू मज्वाला (५४।५०)- यस्वनणिखी (५४।३०)- परमालकृत नारी (५४१५०), सुरभिप्रेरक अनल (५२।५०), निग्रन्यसयत (५४१५१), छन्न (५४१५१), गम्भीरवाजिहेपित (५४१५१),घनिस्वनित (५४।५१), दधिपूरिन कलश (५४१५१), निर्मुक्तमधुर स्वर विस्फुरत्यक्ष वामतो गोमयोरिकरणकारी वायस (५४१५२), भे रोशखर (५४१५३), मंगलशब्द (५४१५३)। __ अनिमित्त (७१४२), शुष्कद्रुम (७।४३), शुष्ककाष्ठ (७४४), वाक्ष (७।४४)- ज्वालामुखी शिवा (७।४५), पतविम्वपरिवेश (७।४६), कवन्ध (७।४६), वृष्टकीलाललवालक (७।४६), निर्धात (७।४६), पर्वत, कम्पन्न (७।४७), मुक्तकेशी वनिता (७।४७), खरस्वर (७१४८), दक्षिणतो भयानकमहास्वन प्रयाणवारणोधुक्त बद्धमण्डल भल्लूक (५७१६६), विकृतनिस्वन-मृद्ध-भ्रमण (५७७०), पृष्ठत क्षुत (७३।१७), अग्रे महाहिछिन्न मार्ग (७३।१८), हा-ही-विक्त्वावयासीति वचासि (७३।१८), छतभाग (७३।१६), उत्तरीयपात (७३।१६) दक्षिणवालभुप्रटन (७३।१६), नानाशकुन विज्ञानप्रवीणधिषण (७३।२१), महोत्पात (७३।२१), शुष्कद्रुमसमारवायसकुलरटन (६७१७५)- परिदेवनारोदन (६७।७६), दुनिमित्त (६७१७७)- (स्त्री) दक्षिणचक्षु सस्पन्द (४६६) आदि। उपर्युक्त विपयो के अतिरिक्त अन्य अनेक विपयो से सम्बद्ध पारिभाषिक तथा विशिष्ट शब्दो का रविण के पद्मपुराण मे उल्लेख हुआ है। भौगोलिक शब्दावली मे, नदी, समुद्र, पर्वत, वन, ग्राम, नगर, जनपद- राष्ट्र, देश, राज्य तया ५ परक शब्दो का उल्लेख हुआ है। इसी प्रकार व्यक्तिवाचक वृहत् नामावली का प्रयोग रविण ने किया है। ये दोनो सूचियाँ पर्याप्त स्थान की अपेक्षा रखती है। यहाँ उनका उल्लेख सम्भव नही है । हमने इन दोनो सूचियो को अपने ग्रन्थ जिनाचार्य रविषणकृत 'पपुराण और तुलसीकृत रामचरित मानस' मे दिया है । कृपालु विद्वान् इन्हे वही देखने की कृपा करे। सदर्भ १ द्रव्य (5) जैनाचार्य रविषणकृत ५मपुराण और तुलसीकृत रामचरितमानस (डा० रमाकान्त शुक्ल)। प्रका० वाणी-परिषद्, दिल्ली । सस्त १९७४ । पृ० १८-३१ । (2) 'Influence of Bāna's 'Harsh-charita on Ravisna's Padmapurana' (Dr Rama Kant Shukla) The Journal of the Ganganath Jha Research Institute,
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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