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________________ ४५४ संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा पड्जककशी ((२४।१२), पड्जमध्यमा (२४।१२), गान्धारीदीच्या (२४।१३) मध्यमपञ्चमी (२४।१३), गान्धारपञ्चमी (२४।१३), रक्तगान्धारी (२४।१३), मध्यमा (२४।१३), आन्ध्री (२४।१४), मध्यमादीच्या (२४।१४), कारवी (२४।१४), नन्दनी (२४।१४), कौशकी (२४।१४), अष्टजाति (२४११५), दशजाति (२४।१५), प्रयोदश अलकार (२४।१५), प्रसन्नादि (२४।१६, १८), प्रसन्नान्त (२४।१६, १८), मध्यप्रसादवान् (२४।१६) प्रसन्नाद्यवसान (२४।१६), चतुर्धा स्यायिभूपण (२४।१६), निवृत्त (२४११७), प्रस्थित (२४।१७), विन्दु (२४।१७), प्रेखोलित (२४।१७), तार (२४।१७), मन्द्र (२४।१७), प्रसन्न (२४।१७), षोढासचारिभूषण (२४११७), आरोहण एकमेव विभूपणम् (२४।१८), कुहर (२४।१८), अलकार योजन साधुगीत (२४।१६) । तत (२४।२०), तन्त्रीसमुत्थान (२४।२०), अवनद्ध (२४।२०), मृदगज (२४।२०), शुपिर (२४।२०), वशस भूत (२४।२०), धन (२४।२०), तालसमुत्थित (२४।२०), चतुर्विद्यावाध (२४।२१), नानाभेद (२४१२१), शृगार (२४।२२), हास्य (२४।२२), करुण (२४।२२), वीर (२४।२२), अद्भुत (२४१२२), भयानक (२४१२२), रोद्र (२४।२३), वीभत्स (२४।२३), शान्त (२४।२३), नव रस (२४।१३)। (आ) लिपि-विज्ञान-सम्बन्धी शब्द अनुवृत्त (२४।२४), विकृत (२४।२४) कल्पित (२४१२४), सामायिक (२४१२५), नैमित्तिक (२४१२५), प्राच्य (२४।२६), मध्यम (२४।२६), यौधेय (२४।२६), समन्द्र (२४।२६), लिपिज्ञान (२४।२४, २६) (इ) उक्तिकौशल-सम्बन्धी शब्द उक्तिकोशल (२४।२७), स्थान (२४।२७), स्वर (२४।२७), सस्कार (२४।२७), विन्यास (२४।२७), काकु (२४१२७), समुदाय (२४१२८), विराम (२७१२८), सामान्याभिहित (२४१२८), समानर्थत्व (२४।२८), भापा (२४।२८), जाति (२४।२८), लक्षणा (२४।३०), उद्देश्य (२४।३०), पदविन्यास (२४-३०), वाक्यविन्यास (२४।३०), सापेक्षा काकु (२४।३१), निरपेक्षा काकु (२४।३१), गद्य (२४१३१), पद्य (२४१३१), मिश्र (२४।३१), सक्षिप्तता (२४।३२), तुल्यार्थता (२४१३३) एकशब्देन वह्वर्थप्रतिपादनम् (२४१३३), आर्यभाषा (२४१३३), लक्षणभापा (२४१३३), लेच्छभापा (२४१३३), पधन्यवहृति (२४१३४), लेख (२४।३४), व्यक्तवाक् (२४१३४), लोकवाक् (२४१३४), मार्गव्यवहार (२४१३४), मातृका (२४१३४)। (ई) चित्रकला-सम्बन्धी शब्द : शुप्कचिन (२४१३६), नानाशुष्क (२४।३६), वजित (२४१३६), आचिन (२४१३६), चन्दनादिद्रवोद्भव (२४३६), कृत्रिम रंग (२४१३७), अकृत्रिमरण (२४१३७), भूजलावरगोचर (२४१३७), वर्ण कलेप (२४१३७) ।
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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