SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 448
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२० संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा पलए (वलय), गहणे (गहन), णूमे (णूम), कक्के (कलक), कु०५ (कुरुक), जिन्हे (जिन्ह), किविसे (किल्वि५), सायरणया (आदरण), गृहणया (गून), चणया (वचन), पलिउचणया (परिकुचन) सातिजोगे (माचियोग)। ____ लोभ के एकार्यक शब्द- लोभे (लोभ), इच्छा (इच्छा), मुच्छा (मूच्छf), कखा (काक्षा), गेही (गृह), तण्हा (तृष्णा), भिज्जा (भिध्या), अभिज्झा (अभिध्या), आसासणया (आश्वासन), पत्यया (प्रार्थना), लालपणया, (लालपन) कामासा (कामाशा), भोगासा (भोगाशा), जीवियासा (जीविताशा), मरणामा (मरणाशा), नदिरागे (नदिराग)। प्रश्नपाकरण दसवा अग है । इसमें भी एकार्थक शब्दो की अनेक स्थलो पर निर्देश हुआ है । वहा प्राणवध (हिंसा) के तीस पर्याय नाम बताए हैं। उनमे से कुछेक ये है अवीसभो (अविश्रभ), अकि. (अकृत्य), घायणा (घातन), मारणा (मारण), वहणा (वध), उ६वणा (उद्रवण), मधू (मृत्यु), असजमो (असयम), दुगतिप्पवाओ (दुर्गतिप्रपात), पावकोवो (पापको५), पावलोभो (पापलोभ), वज्जो (वय), आदि। इसी सूत्र मे असत्य के तीस नाम गिनाए है। उनमें से कुछेक ये हैं अलिय (अलीक), स० (५०), अणज्ज (अनार्य), कंकणा (कल्कन), पचणा (वचना), साती (साचि), अट्ट (आत्त), अ०भक्खाण (अभ्याख्यान), किविस (किल्वि५), अ५.ओ (अप्रत्यय), असमओ (असमय), नूम (नूम), आदि-आदि। अब्रह्मचर्य के तीस नामो मे से कुछेक ये है अवभ (अब्रह्म), मेहुण (मैथुन), सकप्पो (सकल्प), दप्पो (दर्प), मोहो (मोह), मणसखोमो (मन सक्षोभ), अणिमहो (अनिग्रह), विभमो (विभ्रम), अधम्मो (अधर्म), वेर (वर), रहस्स (रहस्य), कामगुणो (कामगुण)। परिग्रह के तीस नामो मे से कुछेक ये है परिगहो (परिग्रह), संचयो (सचय), चयो (चय), उवचयो (उपचय), निहाण (निधान), ६०वसारी (द्रव्यसार), महिन्छ। (महेच्छा), कलिक रडी (कलिकरड), अणत्यो (अनर्य), सथवा (सस्तव), अमुत्ती (अमुक्ति), तहा (तृष्णा), आसत्ती (नासक्ति), असतोसो (असतो५)।१० अहिंसा के सा० पर्यायवाची नामो मे से कुछेक ये हैं अहिंसा (महिमा), दीवो (ही५), ताण (नाण), सरण (शरण), निवाण (निर्वाण), रती (रति), विरती विरति), विसुद्धी (विशुद्धि)।१ आगमो के व्याख्या साहित्य में नियुक्तियों का प्रथम स्थान है। आचार्य भद्रबाहु द्वितीय ने अनेक आगमो पर नियुक्तिया लिखी। वे पद्यमय है। उनकी
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy