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________________ १९वी २०वी शताब्दी के जन कोशकार और उनके कोशो का मूल्याकन ४०५ किसी विशिष्ट विद्वन्मडल को योजनाबद्ध कार्य करना चाहिये। इसके बाद १९२४ ई०-१९३४ ई० की समयावधि मे श्री वी० एल० जन द्वारा आबद्ध और श्री शीतलप्रसादजी द्वारा समाप्त 'वृहज्जन शब्दार्णव' (२ भाग) प्रकाशित हुआ।" यह काफी उपयोगी कोश है। और यदि एक ही व्यक्ति की निष्ठा और लगन का परिणाम है तो सचमुच विस्मयजनक है। इसके बाद १९५४ ई० मे आनन्दसूरि का अल्पपरिचित सैद्धान्तिक शब्दकोश, भाग १' प्रकाशित हुआ, जिसमे जन सैद्धान्तिक शब्दो को हिन्दी मे दिया गया है । इस कोश की अपनी जुदा किस्म की उपयोगिता है। ६ इन कोशो के बाद - जो अपने लक्ष्य मे व्यापक और उदार थे-- १९६६ ई० मे कलकत्ता से एक महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय प्रयत्न हुआ। बाठिया और चौरडिया बन्धुओ ने विषय-कोशो की व्यापक परिकल्पना की। उन्होने जैन विषयो की एक बृहद् तालिका तैयार की और उसे दशमिक पद्धति पर व्यवस्थित किया जन कोशो के क्षेत्र मे यह एक वैज्ञानिक आरभ था, किन्तु इस प्रयत्न के अन्तर्गत प्रकाशित क्रियाकोश, १९६६' के उपरान्त इसके सबन्ध मे कोई समाचार नही मिला । उक्त योजना को मान जैन-कोश-विज्ञान ही नही वरन संपूर्ण कोश-विज्ञान के क्षेत्र की एक अपूर्व घटना कहा जाना चाहिये । यद्यपि 'लेश्या-कोश' के सामग्री स्रोत विशुद्ध श्वेताम्बर ग्रन्थ है तयापि पद्धति की दृष्टि से इस कोश का प्रकाशन एक ऐतिहासिक प्रसग है । इससे दिशा ग्रहण कर अधिक वैज्ञानिक कार्य किया जा सकता है । वस्तुत विषय-कोशो की रचना का कार्य एक महत्त्वपूर्ण कार्य है, जिसे एक बड़े पैमाने पर उठाया जाना चाहिए। इसके बाद १९७० ई० मे जिनेन्द्रसिद्धान्त-कोश' का प्रथम भाग प्रकाशित हुआ। इस कोश का मेरुदण्ड प० गोपाल दास बरैया प्रणीत 'जन-सिद्धान्त-प्रवेशिका (१६०० ई०) है।" बरैयाजी की यह गुटकानुमा पुस्तक एक किस्म की 'जेवी एन्सायक्लोपीडिक डिक्शनरी' ही है, जिसमे जैन सिद्धान्तो को सक्षेप मे प्रस्तुत किया गया है। असल में इस तरह की जेबी डिक्शनरियो का सकलन-सपादन भी युगापेक्षित है। 'जनेन्द्र सिद्धान्त कोश' अपने नाम से ही एक पारिभाषिक शब्दकोश है, जिसमे सभित विपयो को बडे विस्तार के साथ प्रस्तुत किया गया है। 'अभिधान-राजेन्द्र' के उपरान्त यह उसी शृखला का एक महत्वपूर्ण लाक्षणिक शब्दकोश है। इसके सकलयिता है क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी । इसके तीन और भाग क्रमश १९७१, १६७२ और १९७३ मे प्रकाशित हुए है। इसके बाद जैन सिद्धान्तो को कोश के रूप मे प्रस्तुत करने वाला एक कोश वीर सेवा मदिर, दिल्ली ने प्रकाशित किया है। इसका प्रथम भाग १६७२ और द्वितीय १६७३ मे प्रकाशित हुआ है। जिन लक्षणावली' अपने पूर्ववर्ती पारिभाषिक शब्दकोशो से अधिक सार्थक, सफल और वैज्ञानिक है। यह इतनी समस्त है कि इसने 'जनेन्द्र सिद्धान्त को' की पगडडियो पर चलकर मक्षेप या सारणियो के रूप मे
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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