SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 424
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६६ मस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोण की परम्परा हुआ। इस कोश का भी मकलन दशमलव वर्गीकरण के आधार पर किया गया है और उनके उपविषयो की एक लम्बी सूची है। प्रिया के माथ ही कम विषयक सूचनाओ को भी इसमें अकित किया गया है। लेश्या-कोश के समान ही इस कोश के सम्पादन में भी पूर्वोक्त तीन बातो का आवार लिया गया है। इसमे लगभग ४५ ग्रथो का उपयोग किया गया है, जो प्राय श्वेताम्बर आगम ग्रथ है। कुछ दिगम्वर आगमो का भी उपयोग किया गया है। ___ सपदिक ने उक्त दोनो कोशो के अतिरिक्त पुद्गल-कोश, दिगम्बरलेश्या कोश और परिभाषा कोश का भी सकलन किया था परन्तु अभी तक उनका प्रकाशन नही हो सका है। इस प्रकार के कोश जैनदर्शन को समुचित रूप से समझने के लिए नि सदेह उपयोगी होते हैं । ८ जन जेम डिक्शनरी __Jaina Gem Dictionary का सपादन जैनदर्शन के मान्य विहान् जे० एल० जनी ने सन् १९१६ मे किया था, जो आरा से प्रकाशित हुआ है। श्री जैनी ने Heart of Jainism जैसे अनेक ग्रथो को स्वतन्त्र रूप से तैयार किया और तत्वार्य सूत्र जसे मान्य ग्रथो का अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत किया। जैनधर्म को अग्रेजी के मध्यम से प्रस्तुत करने मे सी० आर० जैन और जे० एल० जनी का नाम अविस्मरणीय रहे।।। ___श्री जैनी का यह कोश जैन-पारिभाषिक शब्दो को समझने के लिए एक प्रस्थान ग्रथ कहा जा सकता है। भूमिका मे उन्होने स्वय लिखा है--"यह मुझे अनुभव हुआ कि एक ही जैन शब्द के विभिन्न अनुवादो मे विभिन्न अग्रेजी पर्याय प्रयुक्त हो सकते है । इससे एकरूपता समाप्त हो जाती है और ग्रयो के जैनेतर-पाठको के मन मे दुविधा का कारण बन जाता है। इसलिए सबसे अच्छा उपाय सोचा गया कि अत्यत महत्त्वपूर्ण जैन पारिभापिक शब्दो को साथ रखा जाय और जैनदर्शन के आलोक मे सही अर्थ प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया जाय । निश्चय ही इस तरह के कार्य को अतिम कहना उपयुक्त न होगा। यह उत्तम प्रयास है कि जन पारिभाषिक शब्दो को वर्ण-क्रमानुसार नियोजित किया जाय और उनका अनुवाद अग्रेजी मे दिया जाय।" __इस कोश का माचार प० गोपालदास वरया द्वारा रचित जैन सिद्धान्त प्रवेशिका प्रतीत होता है। एक अन्य कोश श्री वी० एल० जन और श्री शीतलप्रसाद जैन ने 'वृहज्जन-शब्दार्णव' नाम से सन् १९२४ और १९३४ मे दो भागो मे वारावकी से प्रकाशित किया था। इसी प्रकार का आनद सागरसूरि द्वारा लिखित "अल्पपरिचित-सद्धान्तिक शब्दकोश' भाग १, सूरत से सन् १९५४ मे प्रकाशित हुआ था जिसमे जन संातिक शब्दो को सक्षेप मे समझाया गया है।
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy