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________________ आधुनिक जैन कोश-ग्रन्थो का मूल्यांकन ३८६ 8४ प्रकाशन काल चूणि, आदि मे उल्लिखित सिद्धान्त, इतिहास, शिल्प, वेदान्त, न्याय, वैशेषिक, मीमासा आदि का संग्रह किया गया है। इसका प्रकाशन जैन प्रभाकर प्रिन्टिग प्रेस रतलाम से सात भागो मे हुआ। इसकी भूमिका मे लिखा है कि "इस कोश मे भूलसूत्र प्राचीन टीका, व्याख्या तथा ग्रथान्तरो मे उसका उल्लेख बताया गया है । यदि किसी भी विषय पर कथा भी उपलब्ध है तो उसका भी उल्लेख है। तीर्थ और तीर्थंकरो के बारे मे भी लिखा गया है।"२ यह महाकोश यद्यपि सात भागो मे समाप्त हुआ है परन्तु भूमिका मे चार भागो की ही विपय सामग्री का उल्लेख है। इसे हम सक्षेप मे इस प्रकार देख सकते है १ प्रथम भाग अवर्ण सन् १९१० २ द्वितीय भाग आ से ऊ वर्ण तक , ११७८ सन् १९१३ ३ तृतीय भाग 'ए' से 'क्ष' वर्ण तक , १३६४ सन् १९१४ ४ चतर्थ भाग 'ज' से 'न' वर्ण तक , २७७८ सन् १९१७ ५ पचम भाग-- 'प' से 'भ' वर्ण तक , १६३६ सन् १६२१ ६ षष्ठ भाग म से 'व' वर्ण तक , १४६६ सन् १६२३ ७ सप्तम भाग स से ह वर्ण तक , १२४४ सन् १९२५ इन सातो भागो के प्रकाशन मे लगभग पन्द्रह वर्ष लगे और कुल १०५६० पृष्ठो मे यह महाकोश समाप्त हुआ। इसमे अच्छेर, अहिंसा, आगम, आधकिम्म, आयरिय, आलोयगा, ओगाहणा, काल, क्रिया, केवलिपण्णति, गच्छ, चारित्त, चेइय, जोग तित्थयार, पवज्जा, रजोहरण, वत्य, वसहि, विहार, सावय, हेउ, विनय, स६ पट्टावलि, पच्चक्खाण, पडिलेहणा, परिसह, वधण, भावणय, मरण मूलगुण, मोक्ख, लोग, वत्य, वसहि, विणय, वीर, वेयावच्च, सखडि सच्च, समाइय इत्यादि जैसे मुख्य शब्दो पर विशेष विचार किया गया है । इसी तरह अचल, अज्जचन्दणा, अणुबेलधर, अभयदेव अरिष्टनेमि, आराहणा, इलादत्त, इसिमपुत्त, उदयण काकदिय, कोसीराज चक्कदेव, दयदेत, धणसिरि, धणवइ, मूलदत्ता, मूलसिरी, मेहधोस रयनेमि, रोहिणी, समुहपाल, विजयसेन, सीह, सावत्थी, हरिभ६ आदि जमी महत्वपूर्ण कथाओ का विस्तार से उल्लेख किया गया है। यह महाकोश अवश्य है परन्तु महाकोश के प्रयोजन को सिद्ध नही कर पाया। प्रथम तो इसे हम मोटे रूप मे अर्धमागधी महाकोश कह सकते है जिसमे अर्धमागधी प्राकृत जैन आगमो को छोड़कर शेष प्राकृत साहित्य का उपयोग नहीं किया गया और दूसरी बात यह है कि यह मान उद्धरणकोश बन गया। ये उद्धरण इतने लम्ब रख दिये कि पाक देखकर ही धवडा जाता है। कही-कही तो ग्रथो के समूचे भाग प्रस्तुत कर दिये है। फिर इसके बाद उनका सस्कृत रूपातर और भी बोझिल
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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