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________________ संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रश की आनुपूर्वी मे कोश साहित्य ३८५ ७६ गुप्त, डा० हरिहर प्रसाद 'देशीनाममाला मे कृषि-शब्दावली', हिन्दुस्तानी, भाग १६, क ३, जुलाई-सितम्बर १९५८, पृ ८१-१०५ ८० वध, डा० पी०एल० 'आजशन्स ऑन हेमचन्द्राज देशोनाममाला', एनल्स ऑप द भाण्डारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, जिल्द ८, पृ० ६३-७१ ८१ चटर्जी, डा० सुनीतिकुमार - प्रकाशित लेख 'तमिल करपर', जिल्द ८, स० ४, अक्तूबर दिसम्बर, १९५६, पृ० ३०६ ८२ रो, अमृत 'द द्राविडियन एलीमेन्ट इन प्राकृत' इण्डियन एन्टिवेरी, जिल्द ४६, १९१७, पृ० ३३-३६ ८३ उपाध्ये, डा० आ० ने० 'कनारीज वर्ड्स इन देशी लेक्सिकन्स', एनल्स माँव द भाण्डारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, जिल्द १२, भाग २ १६३१, पृ० १३२-१६३ तथा 'मराठी एलीमेन्ट्स इन ए प्राकृत ड्रामा', इण्डियन लिंग्विस्टिक्स, भाग १६, १६५५, प० १४७-१५२ ८४ पटी, डा० सुनीतिकुमार 'उक्तिव्यक्तिप्रकरण' की प्रस्तावना, पृ०६ तथा "ततो देशे देशे प्रतिविषय लोक पामरजनो यया यया गिरापभ्रष्टया यत् किचित् अभिधेय वस्तु पक्ति व्यवहरति सापभ्रश भापा।"-उक्तिव्यक्तिप्रकरण, श्लो० ७ की विवृति । ८५ भनि जिनविजय 'उपितरत्नाकर' की प्रस्तावना, पृ०७ ८६ शास्त्री, डा. देवेन्द्रकुमार अपन भाषा और साहित्य की शोध-प्रवृत्तिया, १६७२, पृ० ५५-५६ ८७ व्यह लर, डा० जे०एच० द देशी शब्दसाग्रह मा हेमचन्द्र, इण्डियन एन्टिवरी जिल्द २, १८७३, पृ० १७.२१ तथा'मॉन ए प्राकृत ग्लासरी इनटाइटिल6 पाइयलच्छी, इण्डियन एन्टिवेरी, जिल्द २, भाग १८, जून १८७३ 55 Zeitschrift der Deutschen Morgenlandischen Gesellschaft, १९१२, पृ० ५४४ ८६ द्रष्टव्य है-तीयंकर' का श्रीमविजयराजेन्द्रसूरीश्वर विशेषाफ, १९७५, पृ० ५६ ६० शास्त्री, डा० देवेन्द्र कुमार जैन दर्शन पारिभाषिक शब्दो के माध्यम से', वही, श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर विशेषाक, पृ० १२६-१३१ ११ वही, पृ० १४७-१५१ ६२ शास्त्री, देवेन्द्रकुमार 'अपभ्रश कोश एक परिचय', हिन्दुस्तानी, भाग ३१, अक १-२, पृ० २१-२२ ६३ पीसन 'वैदिक संस्कृत एण्ड प्राकृत', जर्नल ऑन द अमेरिकन कोरियन्टल सोसायटी, जिल्द ३२, १६१२, पृ० ४२३ ६४ पुसालकर, ए०डी० 'वेयर द पुराणाज ओरिजनली इन प्राकृत', आचार्य ध्रुव स्मारक ___ग्रन्थ, भाग ३, गुजरात विद्यासभा, महमदाबाद, पृ० १०३ ६५ पुष्पदन्त कृत महापुराण, २६,२४,११ ६६ चौकसी, वीजे० कम्पटेटिव प्राकृत अमर, अहमदाबाद, १६३३, पृ० ८ ६७ पाइअ-सद्द महण का उपोद्घात, पृ० २२, द्वितीय सस्करण, १६६३
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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