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________________ ३४८ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा (विक्रमादित्य) आदि कोश लुप्त हो चुके है। श्री शिवदत्त मिय के शिवकोण की व्याख्या मे ५१ कोशो का उल्लेख है । उनके नाम इस प्रकार है शब्दार्णव, मेदिनी विश्व, धन्वन्तरि, भावमिथ कृत, सिंह विरचित, राजनिघण्टु, अमरमाला, केयदेव रचित, अभिधानचूडामणि, अमर, अजेय उल्लण, हृदयदीपक, वाचस्पति, वाप्यचन्द्र, अशोकमल्ल, वाभिट, मदन विनोद, त्रिकाण्डप, हैम, बोपदेव, रभस, लोचन, मिष्ठ, देवल, हलायुध, स्वामी, द्विरूपकोश, नाममाला, हारावली, मदन विनोद, अनेकार्थध्वनिमजरी, केशव, केसरमाला, गालव, गुणरत्नमाला, धरणि, नामगुणमाला, पुरुषोत्तम, मदनपाल, निधण्ट, रत्नकोश, रन्तिदेव, विद्वद्वद्यवल्लभ, जयन्ती, व्याडि, शाश्वतकोश, शिवप्रकाश, शिवदत्त, हट्टचन्द्र, हेमाद्रि । प्रकाशित कोथो मे "अमरकोश" प्राचीन है। इसका रचना-काल लगभग ५०० ई० कहा जाता है।" शाश्वत कृत "अनेकार्यसमु-य" इससे भी प्राचीन माना जाता है, किन्तु समय अज्ञात है। हलायुध कृत · अभिधानरत्नमाला" का समय लगभग ६५० ई० है । इसके लगभग सौ वर्ष पश्चात् यादव कृत "वैजयन्ती कोश" लिखा गया। इसका सम्पादन जी० आपर्ट ने किया था जो मद्रास से सन् १८६३ ई० मे प्रकाशित हुआ था। महेश्वर कवि कृत "विश्व प्रकाश" ११११ ई० की रचना है। इनकी एक अन्य रचना शब्दमेदप्रकाश है । इनके ही अनुकरण पर “मेदिनी", "अनेकार्यसग्रह" आदि कोशो का निर्माण हुआ। मख कवि कृत "अनेकार्यकोश" लगभग ११५० ई० मे कश्मीर में निर्मित हुआ था। यह को सम्पादित होकर सन् १८९७ ई० मे प्रकाशित हो चुका है। "अमरकोश" कापूरक पुरुषोत्तमदेव कृत "निकाण्डशेप कोश" है जो तेरहवी शताब्दी का रचा हुआ कहा जाता है । उनके रपे हुए दो अन्य ग्रन्थ है हारावली और एकाक्षर कोश । महामहोपाध्याय पाण्डेय श्री रामावतार शर्मा ने पार अन्यकारी का विशेष रूप से उल्लेख किया है२२ रत्नाकर, मल्ल, सोमदेव और भावि। श्री केशव कृत "कल्पद्रुमकोश" तथा राघव विरचित "नानार्थमजरा" प्रकाशित हो चुके हैं । इसी प्रकार से महीप रचित "अनेकार्थतिलक" भी प्रकाशित हो चुका है। यह कोश चौदहवी शताब्दी के लगभग रचा गया माना जाता है । कोशकार ने जिन पूर्व रचनाओ के आधार पर कोश की रचना की है उनके नाम हैं। पाणिनि, अहीन्द्र, भागुरि, भोज, भेड, हेमचन्द्र, और अमर इत्यादि । वास्तव मे सस्कृत मे इतने अधिक कोशो की रचना हुई, इतने अधिक उनके उल्लेख मिलते है और अभी इस दिशा मे इतना अधिक कार्य अस्पृष्ट पडा है कि शोध-अनुसन्धान मे सकडो वर्ष लग सकते है। वणव, जैन और बौद्ध आदि कोई भी ऐसा शाब्दिक सम्भवत न होगा, जिसने शब्दकोश की रचना न की हो । दक्षिण भारत के भाण्डागारो मे भी अनेक अनात एव अप्राप्त दुर्लभ कोश-ग्रन्थो की सूचनाएं उपलब्ध होती हैं । अनेकार्यकोश के नाम से ही सस्कृत मे लगभग एक दशक रचनाएँ
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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