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________________ ३३६ संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा देखाऽइ = दिखाता है | ४ आर घटइ > घटारड दिवड > दिवारह ५ आल प्रत्यय से निर्मित रूप घटाता है । प्रचलित रहा = दिलाता है । प्रत्यय से निर्मित रूप जैसे, दिखालड = दिखाता है । मारवाडी मे 'र' के विपर्यय से 'दिरावइ' और 'लिरावई' रूप मिलते हैं, इनके मूल रूप दिवारई' और 'लिवार' है । वेलि मे पधरावितिया वा प्रभाव (१५७) (प्रिया को बांई ओर विठाकर ) मिलता है - यह रूप 'प्रभुणई' मे 'अव' प्रत्यय से बना है । परन्तु प्रत्यययोग के पूर्व अत्य स्वर 'इ' का लोप हुआ है । अव > प्रभण + अव > प्रभाव प्रभणइ+ इस प्रातिपदिक पुरुष और लिंग के प्रत्यय से रूप बनते है । यहाँ कतिपय उन रचनात्मक प्रत्ययो पर भी विचार करना प्रासंगिक होगा जो प्राकृत अपभ्रंश से प्रा० पश्चिमी राजस्थानी मे आए हैं और जो आधुनिक राजस्थानी मे भी प्रयुक्त हुए है । १ इलउ अपभ्रंश के इल्लउ से सरलीकरण होकर प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी मे आगिलर = आगे पूर्विल७ = पहले का उ आधुनिक राजस्थानी मे 'लड' का 'लो' हो गया है, तथा 'आगलो', 'पाछ्लो' यदि रूप बनते हैं । इसी प्रकार प्रा० प० रा० के माहिल आदि से आधुनिक राजस्थानी के मायलो (भीतरी) बीचलो / विचलो (बीच का ) रूप बने है । प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी और आधुनिक राजस्थानी के रूपो मे अंतर अन्त्य 'उ' और 'ओ' का है। अपभ्रंश अवरिल्ल से प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी मे 'ओरिलउ' और फिर ओलिउ वना । इसी प्रकार परिल्लड से परिलउ और पइलउ । इन्ही परिलउ से परलो' और पइल मे 'पैलो' आधुनिक राजस्थानी के रूप निष्पन्न हुए है । こ अलड इसी प्रकार एक और प्रत्यय है--- अलउ, जो प्रा० प० रा मे आंधन और एल जैनेम्पो में दिखाई पड़ता है। अपत्र ण मे भी यह - अल ५ मे ही । आधुनिक राजस्थानी के 'कॉवलो' और 'एकलो' जैसे शब्दों के साथ मि
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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