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________________ प्राकृत-अपभ्रंश का राजस्थानी भाषा पर प्रभाव ३२७ अन्य पुरुष एकवचन पुल्लिंग स्त्रीलिंग १ आलोच आपो आप सू ( ५३ ) २ सीखावि सखी राखी आखे सुजि (७९) ३ धू ढलिये ऊकसं धड ( १२१ ) ४ रतधण " 31 सामान्य भविष्य काल के रूप भी भविष्यकाल से सबद्ध एक सूत्र दिया है भविष्यत् अर्थ मे 'स्य' के स्थान पर 'स' " 33 " ॐच छिंछ ऊछले अति (१२५) ५ कहै वेलिवर लहे कुमारी (२८१ ) ६ काई रे मन कलपसि कृपणा ( २८६ ) ७ किसन पधार्या लोक कहन्ति ( ७२ ) मध्य पु० अन्य पु०व०व०,” अत वेलि की भाषा मे वर्तमान काल मे वही रूप चलते है, जो अपभ्रश की परपरा से आये है । 'कलपसि' जैसे लट् लकार के मध्यम पुरुष एक वचन के अनुवर्ती है । 'कहति' आदि संस्कृत के 'पठति' के सादृश्य पर बनाए गए हैं । वीरसतसई मे भी वर्तमान मे इन्ही रूपो का प्रयोग हुआ है अ० पु० ए० व० स्त्री० ) 11 १ झरे इम रंगरेजणी कूडा ठाकुर काम (८५) २ चून सलूणी सेर ले, मोल समप्पै सीस ( १०० ३ रुण्ड हुवा जीवे जिके, सदा न हेरे साथ ( १०१) ४ पग पग पाछा देण रौ, हुलसे अच्छर हेत ( १०७ ) ५ भोला की चहरो भडा ईखी धारण ऐण (१२२) म० पु० ब० व० पु० अ० 33 ,, ए० व० ६ धावा कत पधारिया, पावा हूत प्रणाम ( ११७) ७ पथ निहारै पाहुणा, गीध विहारै गैंण (१२१) आधुनिक राजस्थानी मे 11 " " " ,, ब०व०पुल्लिंग 11 33 17 " स्त्रीलिंग પુર્વત્તા ब० व० पु० पु०,,,, अ० पु० ए० व० पु० अ० पु० ब० व० पु० अ० पु० ए० पु० अ० पु० ए० स्त्री ज्यू मोर खुजाल पाख। हलवो हेवण ने नारखे आ बिणी तराज ओलू (जुगजुगानी रूप ही हिलोरा लेवें) अतएव धातु से निष्पन्न वर्तमानकालिक रूपो की धारा आधुनिक राजस्थानी मे भी अपना मूल स्रोत अपभ्रश से ही ग्रहण किये है, यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है । अ० पु० ए० पुल्लिंग अपभ्रंश से ही प्रेरित हैं । हेमचंद्र ने 'वर्त्स्यति स्यस्य स ' अर्थात् अपभ्रंश मे आदेश होता है ज अच्छइ त माणिअइ होसइ करतु म अच्छि इस पक्ति मे 'होसइ' भविष्यत् अर्थ मे है | अपभ्रंश मे भविष्यकालिक क्रिया की रूप सारिणी निम्नलिखित है
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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