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________________ २८० मस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा भ० अरिष्टनेमिके पूर्वजो मे शूरसेन राजा हुए हैं, वे शीर्थपुर नगर के स्वामी थे। यया अवार्य निज शायण निजिताशेप विहिप ।। ख्यातशौर्यपुराधीशमूरमेनमहीपते ।। ६३ ।। सुतस्य शूरवीरस्य धारिण्याच तनूभयो । विख्यातोऽन्धकवृष्टिश्च पतिप्टिन रादिवाक् ॥ १४॥ धर्मा पान्धकवृष्ट५च मुभद्रायाश्च तुवरा । समुद्रविजयोऽक्षोभ्यस्तत स्तिमितसागर ।। ६५ ।। हिमवान् विजयो विद्वानचलो धारणाय । पूरण पूरितार्थीच्छो नवमोऽप्यभिनन्दन ।। ६६ ।। वसुदेवोऽन्तिमश्चैव दशाभूवन शशिप्रभा । कुन्ती माद्री च सोमेवा सुते प्रादुर्वभूवतु ।। ६७ ॥ (उत्तर पुराण, पर्व ७०) अर्थात् राजा सूरसेन के शूरवीर पुत्र के दो पुत्र हुए--अन्धकवृष्टि और नरवृष्टि । अन्धकवृष्टि के १ समुद्रविजय, २ अक्षोभ्य, ३ स्तिमितसागर, ४ हिमवान्, ५ विजय, ६ अचल, ७ धारण, ८ पूरण, ६ अभिनन्दन और १० वसुदेव, ये दश पुत्र हुए। आज भी शीर्थपुर नगर सीरीपुर वटेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है और जो मयुरा के समीप ही है । इस उल्लेख से यह वात सिद्ध है कि मयुरा के आस-पास का प्रदेश शूरसेन नाम से प्रसिद्ध था और उस देश की भापा शौरसेनी कहलाती थी। उक्त उल्लेख से इस भापा की प्राचीनता अरिष्टनेमि से भी पूर्ववर्ती काल तक पहुंचती है। शौरसेनी भाषा की कुछ विशेषताए आ० हेमचन्द्र ने इस प्रकार बतलाई है--- १ (तो दो ४,२६०) त के स्थान पर द, यथा तत तदो, पूरित પૂરિયો, મારુતિ ભાવિ ભાવિ . २ (अध क्वचित् ४,२६६) महान्त महन्दो, निश्चिन्त णिचन्दो, अन्त पुरम् अन्देसर आदि। ३ (वादेस्तावति ४,२६२) तावत् ताव, दाव । ४ (मो वा ४, २६४) भो राजन् भो राय, विजयवर्मन् विजयवझ आदि। ५ (भवद् भगवतो ४,२६५) भवान् भव, भगव, भयव आदि। ६ (न वा र्यो य्य ४,२६६) मार्यपुन अय्यउत्त, पक्षे अज्जपुत्त आदि। ७ (थो घ ४,२६७) ययति धेदि, कहेदि, नाथ णाधो, णाही, कय कध कह, राजपथः- राजपयो, राजपहो आदि। ८ (इह होर्यस्य ४,२६८) इह इच, भवथ-होध, होह, परियायध्वे परित्तायध, परित्तावह आदि।
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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