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________________ 31ર્ધમાગધી 30મમ-સાહિત્ય વડી વિશિષ્ટ શરવાવત डॉ. जगदीशचन्द्र जैन वो के पालि त्रिपिटक की तुलना मे अर्धमागधी मे लिखे हुए जैन आगमसाहित्य का अध्ययन अपेक्षाकृत कम मात्रा में हुआ है । जैन आगमो के अध्ययन को प्रकाश मे लाने का श्रेय खासकर वेबर, याकोबी, पिशल, लॉयमान, शूबिंग, માન્સપોર્ટ ભાવિ નર્મન મનીષિયો હી દિયા નામા, નિન્હોને મકાશિત आगम-साहित्य की हस्तलिखित प्रतियो को पढकर उनका आलोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया। आगम-साहित्य का महत्त्व जैन आगम-साहित्य अनेक दृष्टियो से महत्वपूर्ण है । सर्वप्रथम, भगवान महावीर एव उनके शिष्य-प्रशिष्यो के अमूल्य उपदेशो का इसमे संग्रह है, भले ही यह साहित्य अपने मूल रूप मे सुरक्षित न हो । इस साहित्य मे तत्कालीन सामाजिक सास्कृतिक, आर्थिक एवं भौगोलिक विषयो के अतिरिक्त कितनी ही ऐतिहासिक एव अर्ध-ऐतिहासिक परपराओ का उल्लेख है, जो अन्यन्न उपलब्ध नहीं । भारत के प्राचीन इतिहास के सागोपा। ज्ञान के लिए इस सामग्री का विश्लेषण आवश्यक है। जन श्रमण चातुर्मास को छोडकर, एक वर्ष मे आठ महीने एक स्थान से दूसरे स्थान पर गमनागमन करते थे। वृहत्कल्प भाष्य के अध्वप्रकरण के अन्तर्गत जनपद परीक्षा में उल्लेख है कि श्रमण निग्रंथो को विविध देशी भाषाओ मे कुशल होना चाहिये, जिससे कि वे अपने उपदेशो को अधिक-से-अधिक लोगो तक पहुचा सके। भापा के अतिरिक्त उन्हे उन-उन प्रदेशो के रहन-सहन और रीति-रिवाजो का ज्ञान होना भी आवश्यक है। उदाहरणार्य लोक ज्ञान के लिए यह जानना जरूरी है कि किस प्रदेश मे किस प्रकार से अन्न उपजाया जाता है जैसे लाट देश मेवा से,
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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