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________________ ' आप प्राकृत स्वरूप एक विश्लेपण २३ उक्त उद्धरण आपप्राकृत के प्राचीन व्याकरण की ओर इंगित करते है आर्षप्राकृत के वदिश और 'श०८ भी आधुनिक प्राकृत व्याकरण से भिन्न है आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार दकार को तकार आदेश होता है दिन = मतन सदन ==सतन, प्रदेश = प्रतेश ।५४ किन्तु आर्षप्राकृत मे अनेक स्वरो तथा व्यजन के स्थान मे तकार आदेश मिलता है एरावण तेरावण (सून कृता। १।६।२१ ) । मुसावाय मुसावात , ११।१०) । साहुक साहुतं' ' (. , १२११।३३) विसएसण विसतेसण (... , ११।२८) ओरभिए तारभिए । - ....... " २।२।१६ ) काय कात (f , २।२।४ ) समए समते । । ।(, । " २।२।१६ ) रुईण तीण ! । । ' (,, , २।२।१८ ) ઉદ્ધત્વાકેશ आर्ष-प्रयोगो मे कुछ द्वित्वादेश ऐसे है, जो प्राकृत व्याकरणो से सिद्ध नहीं होते सति = सचित्त, । अवित्त अचित्त, सगडभि = स्वकृत भिद् तहकार तयाकार, काय गिरा ' कायगिरा, पुरिस+कार=पुरुषका अणुव्वस =अनुवश, अल्लीण =आलीन' . . हस्वादेश प्राकृत व्याकरण के अनुसार सयुक्त वर्ण.से.पूर्व दीर्घ वर्ण हस्व हो जाता है : किन्तु आर्ष प्राकृत मे यह नियम लागू नहीं होता। प्राचीन आदर्शों में कुछ रूप आज भी सुरक्षित है, जिनमे सयुक्त वर्ण से पूर्व दीर्घ वर्ण उपलब्ध है . ओगह गह→अवग्रह - - . . । पागल+पुगल→पुद्गल - . ।। एक्क+इकएक एत्तो+इत्तो+इत । - ।। . .. , आगम सूत्रो की मूलभाषा अर्धमागधी रही है। देवद्धिगणी ने आगमो का नया सस्करण पल्लभी मे किया था। महाराष्ट्र मे जैन श्रमणो का विहार होने लगा। उस स्थिति मे आगमसूत्रो की अर्धमागधी भाषा महाराष्ट्री से प्रभावित हो गई। आचार्य हेमचन्द्र का विहार-स्थल भी मुख्यात गुजरात -था। वह महाराष्ट्र का समीपवर्ती प्रदेश है। उन्होने महाराष्ट्री के प्रचलित प्रयोगो को अपने प्राकृत व्याकरण मे प्रमुख स्थान दिया । 'अर्धमागधी के उन प्राचीन रूपो, जो उस समय तक आगमो मे सुरक्षित थे, को आर्ष प्रयोग के रूप मे उल्लिखित किया। मूलत प्राचीन आगम-सूत्रो (आयारो, 'सूयगड, उत्तरज्झयणाणि 'आदि) की भापा
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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