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________________ XXI २८७ ३०३ ३४३ ३८७ प्राकृत एव अपभ्रश का आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओ पर प्रभाव ' डॉ०.महावीर सरन जैन एम० ए०, डी० फिल०, डी-लिट् स्नातकोत्तर हिन्दी एव भाषा-विज्ञान विभाग, जबलपुर विश्वविद्यालय, जबलपुर १४. प्राकृत-अपभ्रश का राजस्थानी भाषा पर प्रभाव डॉ० कृष्णकुमार शर्मा एम० ए० (हिन्दी, सस्कृत), पी-एच ० डी०, डी-लिट् - ' हिन्दी विभाग, उदयपुर विश्वविद्यालय, उदयपुर १५ संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रश की आनुपूर्वी मे कोश-साहित्य डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री एम० ए० (हिन्दी), साहित्याचार्य, पी-एच० डी० हिन्दी विभाग, शासकीय महाविद्यालय, नीमच (म०प्र०) १६ आधुनिक जैन कोश ग्रन्थो का मूल्यांकन ', डॉ. श्रीमती पुष्पलता जैन एम० ए० (हिन्दी, भाषा विज्ञान), पी-एच० डी० न्यू एक्सटेन्शन एरिया, सदर, नागपुर १७ १६वी-२०वी शताब्दी के जन कोशकार और उनके कोशो का मूल्याकन डॉ० नेमीचन्द जन एम० ए० (हिन्दी), पी-एच० डी० सम्पादक तीर्थङ्कर ६५, पत्रकार कॉलोनी, कनाडिया रोड, इन्दौर १८ शब्दकोश की प्राचीन पद्धति मुनि दुलहराज १६ संस्कृत के जन पौराणिक काव्यो की शब्द-सम्पत्ति (પદ્મપુરાણ, હરિવશપુરાણ, વિપુરા રત્તરપુરા के संदर्भ मे) डॉ० रमाकान्त शुक्ल एम० ए० (हिन्दी, मस्कृत), साहित्याचार्य, पी-एच० डी० प्राध्यापक स्नातकोत्तर अनुसन्धान हिन्दी विभाग, राजधानी कॉलेज, रिंग रोड, राजा गार्डेन, नई दिल्ली ४०१ ४१७ ४२५
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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