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________________ xvill इनकी उपयोगिता अधिक है और विद्या के क्षेत्र मे अनुमधान करने वालो के लिए प्रस्तुत ग्रन्य की उपयोगिता अधिक है। दोनो भिन्नक्षेत्रीय उपयोगिताओ को एक क्षेत्रीय न बनाकर उन्हे पृथक्-पृथक् नियोजित किया है। इससे स्मृतिग्रन्थ का आकार अवश्य छोटा हुआ है पर प्रकार छोटा नहीं हुआ है। जन आचार्यों ने प्राकृत और मस्कृत-दोनो भाषाओ मे ग्रन्थो का प्रणयन किया है। जैन आगम प्राकृत भाषा मे है। प्राकृत के व्याकरण और शब्दकोश की रचना मे भी जन आचार्यों का योगदान है। आचार्य हेमचन्द्र का देशी नाममाला जसा विरल ग्रन्थ उस योगदान की एक विशेष उपलब्धि है। प्राकृत का अध्ययन हिन्दी तया प्रादेशिक भाषाओ और वोलियो के अध्ययन के लिए आज भी बहुत महत्वपूर्ण है। उसकी उपयोगिता भाषाशास्त्रीय अध्ययन ने और अधिक बढ़ा दी है। भारतीय सम्यता, सस्कृति, इतिहास, तत्वज्ञान और विज्ञान की बहुमूल्य सामग्री प्राकृत ग्रन्थो मे उपलब्ध है। इस दृष्टि से प्राकृत भाषा के विविध पहलुओ पर उपलब्द मीमासा इस ग्रन्थ की गौरववृद्धि करने वाली ही नहीं है किन्तु अतीत के प्रयत्नो का मूल्याकन और वर्तमान की उपयोगिता का भी दिशा-निर्देश है। ___सस्कृत का महत्त्व सर्वविदित है ही। उसमे वैदिक, जन और वौद्ध तीनो परपराओ का देय है । जन-आचार्यो ने सस्कृत के व्याकरण और शब्द-कोशो के निर्माण मे भी अपने प्रज्ञा-कौशल का परिचय दिया है। उसका सही मूल्याकन अभी शेष है। मुझे प्रसन्नता है कि इस ग्रन्य की मयोजना ने एक नई दिशा का उद्घाटन किया है । आचार्यवर कालूगणी की स्मृति इसका निमित्त बनी है। उनकी स्मृति उनकी मनीपा के अनुरूप हुई है, इससे हम सब बहुत प्रसन्न है। अल्प समय में इसकी सामग्री का चयन और उपलजि हुई है, इसमे सपादको को तत्परता परिलक्षित होती है। छापर आचार्यवर की जन्मभूमि है। वहां के निवासी श्रावक-गण ने प्रस्तुत अन्य के प्रकाशन का दायित्व लिया है। इस ग्रन्थ से शोध-विद्यार्थियो को पथदर्शन प्राप्त हो सकेगा। બાવાર્થ તુનો नाहर भवन, राजलदेसर २०-१-७७
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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