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________________ १२२ मस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा २२ दुर्गपदप्रवोध _____ इस नाम की एक टीका जिनप्रवोधसूरि ने भी वि० स० १३२८ मे बनाई थी। इसका उल्लेख 'जनसाहित्य का वृहद् इतिहास, भाग ३ मे डॉ० गुलाबचन्द्र चौधरी ने किया है। टीका का अन्य विवरण प्राप्त नही होता है। २३ दुर्गवृत्तिटिप्पणी पण्डित गोल्हण ने १६वी शताब्दी में इसे लिखा था। १५४ पन्नो को एक हस्तलेख राजस्थानप्राच्यविद्याप्रतिष्ठान, जोधपुर मे तथा ३४८ पन्नो का अहमदाबाद मे सहीत है । इसमे त्रिलोचनदासकृत कातन्त्र वृत्तिपलिका को भी उद्धृत किया गया है। २४ दौर्गसिही वृत्ति ___ दुर्गसिंह रचित वृत्ति पर आचार्य प्रधुम्न सूरि ने वि० स० १३६६ मे इस वृत्ति को लिखा है, जिसका परिणाम ३००० श्लोक माना जाता है। बीकानेर के भण्डार मे इसका हस्तलेख है (द्र०-जनमाहित्य का वृहद इतिहास, भाग ५) । २५ धातुपारायणम् __कातन्त्रवृत्तिपत्रिकाप्रदीप के लेखक पण्डित देसल के पिता पण्डित नन्दी ने कातन्त्रव्याकरण के धातुपाठ पर इसे लिखा था, इसकी सूचना कातन्त्रवृत्तिपलिकाप्रदीप के अन्त मे देसल ने दी है। राजस्थान मे संस्कृत साहित्य की खोज' नामक सूचनापन मे श्रीधर रामकृष्ण भाण्डारकर ने नन्दिकृत टीका के कठिन पदो पर धनेश्वर के शिप्य चन्द्रसूरिकृत एक व्याख्या का उल्लेख किया है (१०० ३१)। जैसलमेर के किसी हस्तलेख-भण्डार मे यह व्याख्या श्रीभाण्डारकर को उपलब्ध हुई थी। पर्वतीय विश्वेश्वरसूरिचित व्याकरणसिद्धान्तसुधानिधि मे इस ग्रन्थ को उद्धृत किया गया है । धातुपारायण का अन्य विवरण अप्राप्त है। २६ वालाववोध. ___ अचलाछेश्वर मेस्तुड्गसूरि ने इसका प्रणयन किया था। इसके अनेक खण्ड। हस्तलेख अहमदाबाद, जोवपुर तथा बीकानेर में उपलब्ध होते है । किसी किमी हस्तलेख मे अचूणि'टीका का भी उल्लेख हुआ है सम्भवत मेस्तुड्गसूरि ने इसे भी बनाया हो। ग्रन्थ के प्रारम्भ मे शारदा देवी को प्रणाम कर शर्ववर्मप्रणीत सूत्रो पर व्याख्या करने की प्रतिज्ञा की है
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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