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________________ ६६ मस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा जिसका स्त्रीलिंग रूप जरती होगा। हेम ने जृप धातु से अत् प्रत्यय करके उक्त रूपो की मिद्धि की है। _____ सस्कृत भाषा की यह मामान्य विधि है कि इसमे परस्मैपदी धातुओ के साथ अत् और आत्मनेपदी धातुओ के साथ आन प्रत्यय (होता हुआ अर्थ मे) लगते है। इसके विपरीत परस्मैपदी धानुओ से आन तथा आत्मनेपदी धातुओ से अत् प्रत्यय नही आ सकते । पाणिनीय व्याकरण में इस बात का पूर्ण निर्वाह किया गया है। पर हेम व्याकरण मे पाणिनि की अपेक्षा प्रक्रिया की विशेषता है। हेम ने अवस्था, शक्ति एव गील अर्थ मे गच्छमान आदि प्रयोग भी सिद्ध किये है । यह भापा शास्त्र की एक घटना ही कही जायगी। ऐमा मालूम होता है कि पाणिनि के बहुत दिनो के बाद उक्त अर्थों में गच्छमान आदि प्रयोगो का भी औचित्य मान लिया गया होगा। इसलिए हेम ने कुछ विशेष अर्थों मे परस्मैपदी धातुओ से भी आन प्रत्यय का अनुशासन किया ! कृदन्त प्रकरण मे और पाणिनि के अवशेष प्रत्ययो के अनुशासन मे प्राय समता है । हेम ने अपने इस प्रकरण को पर्याप्त पुष्ट बनाने का प्रयास किया है। कृदन्त के अनतर हेम ने तद्धित प्रत्ययो का अनुशासन किया है । यद्यपि पाणिनीय अनुशासन मे तद्धित प्रकरण कृदन्त के पहिले आ गया है। भट्टोजि दीक्षित का पाणिनीय तन्त्र की प्रक्रिया को व्यवस्थित रूप देने के लिए सिद्धान्त कौमुदी का पाणिनीय मस्करण तैयार किया है । इसमे इन्होने प्रतिपादित शब्दो के साधुत्व के अनन्त र उनके विकारी तद्धित रूपो की साधना प्रस्तुत की है। यह एक साधारण मी बात है कि सुबन्त शब्दो का विकास तद्धित-निप्पन्न शब्द है, और तिडन्त गदी का विकार कृदन्त शब्द है । अत. व्याकरण के क्रमानुसार वर्णमाला, सन्धि मुवन्त आन्द, उनके स्त्रीलिंग और पुल्लिग विधायक प्रत्यय, अर्थानुसार विभक्ति विधान, सुबन्तो के सामाजिक प्रयोग, सुवन्तो के विकारी तद्धित प्रत्ययो से निप्पन्न तद्धितान्त वाद, तिडन्त, तिजन्तो के विभिन्न अर्थो मे प्रयुक्त प्रक्रिया रूप एवं तिइन्त के विकारी कृत प्रत्ययो से मयोग से निष्पन्न कृदन्त शब्द पाते हैं। हेम व्याकरण मे निडतो के अनन्नर कृदन्त शव्द और उसके पश्चात् विभिन्न अर्थों मे, विभिन्न तद्धित प्रत्ययो से निप्पन्न सुवन्त विकारी तद्धितान्त शब्द आए हैं। हेम का क्रम इस प्रकार है. पहले वे सुवन्त, तिडन्त की समस्त पर्वा कर लत हैं, इसके ५.चान उनके विकारो का निरूपण करते हैं। इन विकारो मे प्रयम तिडन्तविकारी कृत प्रत्ययान्त कृदन्तो का प्ररूपण हैं, अनन्तर सुवन्तो के विकारी तद्वितान्त शब्दो का कथन है । अत हेम ने अपने क्रमानुसार तद्वित प्रत्ययो का मबसे अन्त में अनुशासन किया है। पाणिनि ने ण्य प्रत्यय के द्वारा दिति मे दैत्य, अदिति और आदित्य दोनो से
SR No.010482
Book TitleSanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
PublisherKalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
Publication Year1977
Total Pages599
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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