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________________ wwmomenammaNIN विजयनगीवासन बास्नानधर्म। . छद्रोंक तिरिक्त मौर भी जातियां हो चको यो। मोमें पर्णाश्रमकी कट्टरता मी पूर्ण रूपमें प्रविष्ट नही हुई थी, 'जनमें बैनाचार्य और कुरुको मान्यता पूर्ववत प्रचलित थी। 30 वर्णके जैनी परस्पर विवाह सम्म करते थे। इनमें मी सेठी वाणि"बनेट नानीदेशी, अमरावतीकोटे, तदेयर कुक, कडितलेगोत्र गादि बातियोंका बनना शुरू हुमा था। स्त्री समाज। समाजमें स्त्रियों का सम्मानीय स्थान था। पालक-बालिकाओं को समानरूपमें शिक्षा-दीक्षा दी जाती थी। कन्याओं को संगीत, नृत्य, चित्रकारी नादि ललित कलायें विशेष रूपसे सिखाई जाती थी। त्रियों का पतिके साथ युद्ध, यात्रा और पणिजमें नाकर भाग लेने के तल्लेखोंसे स्पष्ट है उस समय सियों में परदेका रिवान नहीं था।' विदेशी यात्री भी यही लिख गये हैं १+ दक्षिणमें पादेकी प्रथा मात्र भी नहीं है। किन्तु उस समय बहु विवाह प्रथाका बहुपचार था। सर्वसाधारण लोग भी अनेक विवाह करते थे। दहेजमें गांवतक दिये जाते थे। शुद्र मपनी कन्याओंको बेचते भी थे। इन समाननियमों का पान न करने लोग जातिपहिष्कृत कर दिये जाते थे। इस प्रकार समाजमें वैवाहिक प्रया कठोर और बुराईस खाली नहीं थी। लियों में पतिक साब नल मानेकी नृशंप मती-प्रथा प्रचलित थी।' १-वि०, पृ. २००-२०१ १+Not did they try to hide their women.-Major, p. 14 २-Major, II. 'p. 23'वि . १.१ ।।-विह. "पृ. २०१२. . Major, IL. P. 6.
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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