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________________ mommmwammam . ३२] संवि जैन इतिहास । ' वो हिन्दुओंके दिक टूट रहे थे और सा यह गनुभव कर रहे के कि किस तरह अपनी खोई हुई म्वाधीनता पार करें। विजयनगर राज्पकी स्थापना।। साही सम्पदायों के विवाशील पुरुष मनुभव कर रहे थे कि किसी पराक्रमी और बुद्धिशाली शासकके नेतृत्व में हिन्दुओंका मुसंगठित राज्य स्थापित किया जाये। उन्होंने यह भी देखा कि होयसल नरेशोंके सामन्त महामंडरेश्वर राजा हरिसर और बुक अतीव शक्तिशाली और चतुर शासक है। अत: एक संघ बुलाया गया और उसके निश्चयानुसार हरिहरके नेतृत्व में एक मुगठिन और समुदार गज्यकी स्थापना सन् १३५६६० में की गई। यद्यपि वह एक राजतंत्र था, परन्तु उसका ध्येय विशुद्ध राष्ट्रीयता बी-साम्प्रदायिक ताके जुमेको हिन्दुओंने त उतार फेंका था । एक गष्ट्रकी भावना उनके हृदयमें तभी जागृत हुई बाकि यवनोंके भयंकर बाकमणोंने उनकी बलिं खोली और साम्प्रदायिकताके विषका घातक परिणाम उनकी दृष्टि में चढ़ा। वैष्णव, , जैन, और लिंगायत जो भागसमें बड़ा करते थे, उनको एक संगठित-शक्तिमें परिवर्तित कानेका उद्देश्य विजयनगर साम्राज्यकी बढ़ बमानेमें कारणभूत मा ! सन् १३४६१० में हरिहग्ने अपने भाईयों-नुक. माय तथा मणकी सहायतासे लोकमतको मान देते हुए दक्षिण भातकी स्वाधीनताको अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये तहमदा नदी के तौर पर विजयनगर राज्यको स्थापना की ।' कतिपय १-०, पृ. ८-११, मैकु पृ. ..७ । । -मो.मा. ३ पृ. .. भोर इंहिम्न. मा. १ पृ. २१-१३. .. . .
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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