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________________ ememommmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm विजयनगर साम्राज्यका इतिहास। [२९ वैविक मार्यधर्म, मालम होता है, दक्षिण भारतमें चैनधर्म के बहुत समय बाद नाया। 'रामायण' से स्पष्ट होता कि वैदिक ऋषि जगत्यने वहार सर्वप्रथम ब्रमण धर्मको फैलाया श्री। पयपुगण से स्पष्ट है कि नर्मदा तटके सुरोंमें जैनधर्म का प्रचार देवों और दैत्यों के संघर्षकालमें हुमा थी । भागवत से स्पष्ट है कि ऋषभदेवके धर्मको कोंक, बैंक और कुटक देशके राजा महंतन वहां प्रचलित किया था। कोंक देश स्पष्टतः कोकणका और दक्षिणके वेङ्गि' देशका चातक है। कुटकसे संभवतः कणाटक और गंगवाहि प्रदेश भाभिप्रेत है। यह देश एक अत्यन्त प्राचीनकालसे जैनधर्मके केन्द्र रहे हैं। इनम ही. उपरांत विजयनगर राजाओंके शासन चक चला था। विजयनगर राज्यकी भोगोलिक स्थिति । होयसल साम्राज्यके भयावशेषोंपर ही विजयनगरके हिन्दू साम्राज्यका निर्माण हुआ। परिणामतः विजयनगर साम्रज्यका विस्तार होरमक सम्राटोंके शासित क्षेत्र तक पारम्भमें सीमित होना बाविक है। विजयनगर साम्राज्य दक्षिणके कर्णाटक. मसा कोकण भादि प्रदेशों में फैला हुआ था। वह भूमि उर्वरा और बहुमूल्य वृक्षों और धातुओंसे परिपूर्ण थी। विजयनगर साम्राज्पकी समृद्धिमें वह भूमि एक मुख्य कारण थी। - १-विर, पृ. ५ । . २-पद्मपुराण (मई) प्रथम सृष्टि खंड १३ म.। ३-'तस्य किसानु चरितमुपारण्य कोङ्क बेक कुटकाना राज नमोपशिवकावधर्म उकायमाणो भवितव्येन विमोहित:.........संपवतंविष्यते । +कको १९ ।
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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