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________________ प रीष६०... पूर्व कारमें वास्तु म (Zoroaster) 1 बाग हिंसक पबिधानका विधान हुमा बताया जाता है, वही वस्तु द्वितीय (Zoroaster II) ने पूर्व सन् ७०० में अपने उपदेश नसिक पलिदानोंका ही निकरण किया था। ईस्वी पूर्व दूसरी तीसरी शताब्दी में रचे गए बरिष्टीयमके पत्र' (The Letter of Aristeas) में स्पष्ट लिखा है कि यहूदी भादि पाचीन भारततर बोके अन्य कृत भाषामें लिखे गये और उनमें महिंसक पसिनानों का ही विधान था। यूनानमें पिबागोर (Pythagoras) एवं नय तत्ववेताओंने महिंसाका प्रचार किया था। माशंशत: जैन सीकरों और श्रमणों द्वारा महिला संस्कृतिका विकाश विश्वव्यापी हुमा था। इन तीर्थकरों का वर्णन हम प्रस्तुत इतिहासके प्रथम भागमें कर चुके है। __ मगवान महावीर । उपरान्त मन्तिम तीर्थकर भ० महावीरने एक सर्वतोमुखी काति मातमें उपस्थित की थी, जिससे समान व्यवस्थामें उदार माम्यवृत्तिका समावेश हुमा; लोक जीवन परोपकारमय महिंसा वृत्तिका पोषक बना। पशुओंको भी त्राण मिला और गोपनकी वृद्धि हुई। मानव बीपन नैतिकताके ऊंचे प्रस्तर पर पहुंचा। कोई भी मानव दास बनाकर नहीं सखा गया, पुरुष ही नहीं, खियां भी घर छोड़कर लोकोद्वारके पुनीत कार्यमें लगी थी; मानवों में राष्ट्रीय एकीकरणकी भावना जगी थी। १-२०मा० १२ पृ. १४३.१४४ मोर ऐ०, मा." पृ. १४-१९
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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