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________________ momeomommommommommommemories m ame कन्या. पुर्ण मादिका दान देना उसने स्वीकार किया। इस घटना सायही बामण वर्गमें एक अन्य विधारबाग निकी, जिसमें 'माया' नहीं, परिग्राको-शरीर पुष्टि और इन्द्रिय लिप्साको प्रमुख स्थान मिला जिसमें डिमा-गक्षमी माहिसा देवीके मासनपर बैठो। बीस तीर्थकर मुनिसुव्रतनामजीके ममय तक वह इतनी बलवान होगा कि खुल्लमखुल्ला कि बलिदानों और रज्ञोंका विधान किया गया। वैदिक ऋचाओंका शब्दार्थ प्राण काके रिमा और बामनाको पोषण मिला, गजा बसुने हम हिमा प्रवृत्तिको भागे बढ़ाया ! महिमा प्रधान श्रमण विचारधारा क्षीण होगई। "महाभारत" और कुत्तनिपात" से भी यह प्राट है कि पहले ब्राह्मण बहिसक यज्ञोंको काता-शाकि चावलों को होमता था, परन्तु पन्त वह पशु यज्ञोंको कान में संख्य हुमा था। इस हिंसक प्रवृत्तिसे देशमें तामसिक पाशविस्ताका पावल्या होने लोक मृढ़ता फैली। देवताओं के कोप और भूतप्रेतके भयसे मानव घबहा गया । पशुबलि देका उसने उनको प्रसन्न करने का स्वांग रचा। भूनों और रक्षक मावास-वृक्षोंकी भी पूना होने लगा। इंद्र, वरुण नाम मादि देवता भी पूजे जाने खगे। उनका अलंकारमय माध्यात्मिक रूप जनताकी दृष्टि से बाहर हो गया। हिंसा खिखिला रमा, पान्तु श्रमण इससे पाडाय नहीं। तीर्थकर नमि और नेमिने पुनः हिंसाका झण्डा ऊंचा उठाया। उनके तीनकालमें कामिनीकंचन भोर मच-मसकी वासनामें कोक बहा माहा बा। नेमिने बारे में घिरे हुए पशुओंके रूपले युगवर्ती घोर रिसाको देला का नारायण बामाकीमतोषभोगोनिक मिचेर
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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