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________________ संक्षिप्त जैन इस्लिाम। कहाना बा, जिसका अर्थ होता है सर्वज्ञ ईश' (Knowing Lord) उस कन्नर' ( Light=काश ) भी कहते थे। बैनषमे में माप्तदेवको मवज्ञ और मदर्शी माना गया है और वह ज्ञानपुंबके प्रकाश कहे गये हैं। चन्द्रदेव दयं एक तीर्थकका नाम था । मूलमें 'सिन' शन्दक अर्थ 'सर्वज्ञ-ईश' को भूलकर मु-लोग चन्द्रमाको पुनने मंगे। बैनी भी सूय और चंद्रके विनानोमें कृत्रिम जिन मंदिर और जिन प्रतिमा माना उनकी नियति वन्दना करते हैं। म. पार्श्वनाथ अपने पूर्वमद जब सामन्त कुमार गजा थे, तब उन्होंने महामह यज्ञ अथवा जिनपूजा विधान किया था और सूर्य विमानमें स्थित जिनेन्द्रकी वह विशेष पूना काने लगे थे। मालुम होता है सभीसे मु.जाति एवं अन्य नियों मूर्य एवं चंद्रकी पूजानेका प्रचार हुमा था। सुमे। और न्धुिकी मुद्राओंप. इन देवताओंके नाम अर्थात् सिन, नत्रा, श्री भादि पढ़े गये है. बत: म विवेचनसं भी जैनधर्मका मान जोदडोके ऐश्वर्यकालमें प्रचलित होना सिद्ध है। विद्वानों को जैन पुगों की मान्यताओं में ऐतिहासिक तथ्य सूमन गा है और वे अरिष्टनेमिका भी ऐतिहासिक पुरुष मानने लगे हैं।' सिन्धु मोर सौवी या सोट्रक हातsvm W जैन पुगों और यायो विशेष प्रकाश पानेको संभावना है। - १-रिक मा. ७ परिशिष्ट पृ. २७-३०, २-माग भyaवाचनाब' (स) पृष्ट २९-३७, ३-६कि. मा.७ व मा. ८के • परिशिष्ट देखो। 4. Lord Aristanemi, Appiadis, D.p. 89-90. so ....le Pauranic literaware of the love son containe, some
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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