SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४] वियन साम्राज्यमें यद्यपि वर्णाश्रमी पोमणिक धर्मका • बार गुणा बा, फिर भी मैनधर्म बीविता , क्योंकि जनतामें उसकी बादी पेठ हो गई थी। इस समय जैन धर्म पर पड़ोसी हिन्दू अर्मका प्रभाव पा और उनमें नाति-पांतिकी उति भोर पहाताका श्रीगणेश हुमा बा, यह पहले भी लिला बाचुका है। ऐसे समबमें यो वेणुरु जैसे नगण्य प्राममें भी बैन शासकोंका प्रापल्य उल्लेखनीय या वेणूरुमें सन् १६०१ में तिम्मराजने माणवेगोगके श्री बाहकीर्ति पंडिसके उपदेशसे गोमटेशकी विशालकाय मर्ति स्थापित की यो । से वेणरु भी एक प्रमुख केन्द्र और वीर्य होगया । बेलूर । इसी १४ शताब्दिसे १७वीं शतानि तक बेलर भी बैन न केन्द्र रहा था, यद्यपि कह हिन्दू धर्मका गढ़वा। बहार बीच मन्दिर पास', 'पादिनापेर भोर शांतिनाथेश्वर सति: नामक बन गये थे। बेलग्में मूलसंषके देशीयगण वरपालि और मानायके गुरुभोंकी सम्परा स्थापित होगई थी। इसका प्रभावका किन संघ गण-गबसे गाये बढ़कर कि-'समुझ में भी निमक होगा। सन् १९३८ में रके हयाद्रि नायको शियों और कैनों में बहुमा को पेवारके न nिian सीने विश्वास से भास: याने सेना प्रमाणित है। विजयनगर सामानी Amit पालेको विशी, कहार, बेन बलियोको
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy