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________________ विजयनगरकी शासन व्यवस्था जैनधर्म । [१२७ सकिना माधवराय बनवासे १२०००के प्रान्तीय शासक थे, तब एक उपद्रव उठ खड़ा हुमा । कोकण प्रदेशके कतिपय नीच पुरुषोंने विद्रोह कर दिया। गनसेनाका नेतृत्व गरा कर रहे थे। यह बड़ी बहादुरीके साथ कोंकणियोंसे बड़े और इसी युद्ध में बीरगतिको. प्राप्त हुये। उन्होंने विद्रोहियोंको परास्त करके जिनेन्द्र के चरणों में सीनता प्राप्त की। महान थे वह ! सेनापति सिरियण्ण। वैचप्पके पुत्र सिरियण्ण भी जैनधर्म के अनन्य भक्त थे। उनके पिताने जहां देश और राजकी सेवा पाणोत्सर्ग किये थे, et सिरियण्णने धर्मप्रभावनाके लिये अग्नी ऐहिक जीवनको समाप्त की थी। उनकी प्रकृति बचपनसे ही निवृत्ति-पाक थी। उनका विवाह हुआ। अपनी पत्नी पदाम्बिके के साथ उन्होंने भोग भोगे। किन्तु वह हद सम्यक्त्वी थे। भोग उनको भुग से उपते थे। एक दिन उन्होंने अपने गुरु मुनिभद्रसे निवेदन किया कि वह उसको परम सुखधाम-मोक्ष मत करनेकी नाज्ञा है। गुरुने उनको भव्य गनकर साधु दीक्षा दी । साधु सिरिय धर्मसापना में लीन होगये। सन् ११००१० में उन्होंने समाधिमरण किया । उसमय नाकाशसे पुष्पवर्षा होरही थी और मेरि, दुंदुनि एवं महामुरुम बाजे बाहे थे। वह जिनेन्द्रकोंमें जीन होगये।' उदरे- गुरु परम्परा । सो बैन गुरु बाबाष्णरूपमें प्रवाहित ही थी। इसठिये १ मे, १. ११५-11. .. .. .:
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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