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________________ १२४] संचित न इतिहास । भी बने हुये थे। विजयनगर साम्राज्य के प्रमुख नगरोंके निर्माणमें जैनोंका हाय ही सर्वोपरिया। देश के बड़े व्यापारी और योगी लोग थे। अपने धर्म की प्रभावना एवं लोकहितके कार्योको करने के एक दूसरेसे पर्दा किया करते थे।' स्तवनिधि। स्तबनिधि सोहराब तालुकमें एक प्रमुख नगर भौर बैनधर्मका केन्द्र था । वहाके शासकगण जैनधर्मानुयायी होने के साथ साथ उसके अनन्य प्रचारक थे, यह पहले लिखा बाचुका है। स्तबनिषि समृद्धिशाली नगर था, जिसकी तुलना एक शिकालेसमें इन्द्रकी नगरी बलकारतीसे की गई थी। वहां नयनाभिराम विनमंदिर बने हुये थे. जिनमें निरंतर बैनाचार्योका धर्मोपदेश, जिनेन्द्रकी पूजा-अर्चा और दान-पुण्य हुआ करता था। श्रापक श्राविकायें निरन धर्मनियमों का पाटन करके सन्यासमरण किया करते थे। उनकी स्मृतिमें निषधि वीरगल बनाये जाते थे। ऐसा ही एक निपषिका यहाँसे मिला था, जिसमें एक भव्य बाविकाका चित्रण किया गया है। निस्सन्देह स्तनिधिकी प्रसिद्धि इसनी मषिक थी कि शैष बामणोंने भी अपने एक केन्द्रका नाम 'तबनिषि' सखा बा, बोकि हसन बिले में थी। मी नमसेन ने अपने कलह धर्मामृत' (१११२६०) संभवतः इसी स्वपनिषिका उल्लेख किया है और बिसाकि वहाके नावामी (मति) प्रसिद्ध थे। पपि का पविधि सोया -... 11-11४. १-०.११५. १-AMINOD ११.१..-IA,XI.P.B.s-bidrp.it
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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