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________________ ११4] जैन इतिहास | बात था। उनका उल्लेख पहले किया जा चुका है। गुण्ड दण्डनाथ बाप जैन नहीं थे, किन्तु उनकी उदार वृति थी । अपने एक किलेखके मकाचरणमें उन्होंने जिनेन्द्रका भी उल्लेख किया है। " कम्पणगौड़ और जैनधर्म | गयिनाड के शासक मसनहल्लि कम्भणगौड़ भी उल्लेखनीय जैन राज्याधिकारी थे। उनके गुरु श्री पण्डितदेव थे। सन् १४२४ में उन्होंने होटहलि नामक ग्राम श्रवणबेलगोकके गोम्मटदेवकी पूजा के लिए भेंट किया था। उन्हीं की तरह बल्लभराजदेव महाभर मी एक नादर्श. बैन थे। वह महामण्डलेश्वर श्रीपनिराजके पौत्र और राजय्यदेव महामरसुके पुत्र थे । उन्होंने चिनवर गोबिन्द सेट्टिके नावदन पर हेमाश्वसदि नामक जैन मंदिर के लिए भूमिदान दिया था। हरिहर द्वि० के राजमंत्रियों में भी एक बल्लभराय महाराज थे, जो वीर देवरस और मलिदेवी के पुत्र थे। वह चालुक्य चक्रवर्ती कहलाते थे। * संभक है उन्होंके वंशज बल्लभराजदेव हो । हरिहररायके एक अन्य राजमंत्री मुहम्य दंडाधिप थे। उन्होंने संभवतः मधुर जैन पंडितको लाभ दिया था। इस प्रकार हम देखते हैं कि विजयनगर के राजकर्मचारियोंमें श्री जैन धर्मकी मान्यता थी । ४ जनताका धर्म और केन्द्र स्थान । इस प्रकार राज्याश्रयको पुनः प्राप्त करके जैन धर्म जनता में भी चमक उठा था। जब कभी साम्प्रदायिक कट्टरता से बैष्णवादि लोग 1- Ibid, 292. 2- Ibid, 309 - 0 १० ३१० ४-मी०, १९/४ 5-Ibid. 5
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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