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________________ ११. ee राकमी भी थे। एक वीरगळमें सम्मान किये कहा गया है कि उन्होंने कोणके युद्ध में अपने शोका परिचा दिया था-सैकड़ों कोणियोंको उन्होंने तबारके घाट उतारा था। बिनेन्द्र भावान्के वह मनन्य भक्त थे। हो सकता है कि उपर्युलिखित युद्ध में उन्होंने बीरगति पाई हो; क्योंकि वीरगलमें उनको सर्गपुस्व प्राप्त किया लिखा है।' बपि उनकी सन्ततिका परिचय मिलता है, किन्तु उनके वंशके विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है। उनके तीन पुत्र (१) मङ्गप्प, (२) रूगप्प मोर (३) बुखण्य नामक हुये थे। वे तीनों शीक धर्मसे मषित मौर खत्रय धर्मके भाराधक थे। राजमंत्री इरुगप्प । इनमें से उपेठ पुत्र मनपर अपने पिताके पश्चात् राजमंत्रिपद र भासद हुये थे। वह महान् गुणवान थे और बहादुर भी थे। नैनागमके ज्ञाता और अणुव्रतोंके मागषक थे। उनकी धर्मपत्री नानको सीताके समान यो; जिनसे उनके दो पुत्र (१)वैचर, (२) और (रु नामक हुये थे। हरिहर द्वितीयके मंत्रियों में तात्र बचपदण न्तुले सस्य वीना ॥३॥ तस्मादजायन्त जगदजयन्तः पुत्रास्त्रया भूषित काशीलाः। येभ प. मानत मध्यल की च भवन स्वा सदि १-का. ८ (5b, १५२. - .... २- तिमानिनी सुरके। महितगुणोऽमा पनि मnि ... माणपोयोmara..
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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