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________________ विजयनगरकी शासन व्यवस्था निर्म। [१.१ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmसामने किया चैत्यालय बनवाया गया तथा शामिाहम . १५०८ चैत्र सुदी ५ को भी पर, मल्लि या पुस्तकी मति चारों सम्फ स्थापित की पश्चिममें २४ तीर्थकर स्थापित किये। उनके भाभिषेकके लिये तेस्पारू ग्राम दिया। इन्द्रपन छंदमें सर्व महाराबने रचकर लिखा है।' इस वर्णनसे माह भैरवनरेखा ऐशर्य, धर्मभाव और विद्यापटुता स्पष्ट है। भैरव भरसूनरेशोंके धर्मकृत्य । भैरव परसनरेशों के शिलालेखोंसे उनका नर्म प्रेम और प्रदान स्पष्ट है! सन् १९०८१०में २० माट्रपरको मा भैरवदेवाने समाधिमरण किया तो उनकी निषधि बनाई गई । भैरबरसा रामानोंक सामन्त भी चैनधर्म के प्रभावक रहे थे। हापलिमें सासवेन्द्रक्षितिपय संगीतपुरके पंडितार्य परमगुरुके उपदेशसे १३ जून सन १९८१को चंद्रपम जिनकी पतिमा और मानस्तंम निर्माण कार्य थे। मुहमटकसमें बक गुरुके शिष्य चेनरायने एक चैत्य निर्माण कराया। उनकी रानी गंगान्वयी भामिनीदेवी प्राचार पाने में थी। १. भने सन् १९९०१० को नोने सल्लेखना विधिस प्राण दिसत किये। सं० १३५१ में अमिना बारकीर्तिके शिष्य मेरो त्रिभुवनचूडामणि वैय नामक मंदिर मालातकीपुर, बेल्गोपुर, चंद्रगुण और होमावरमें बनाये थे। वेणुरके चन्द्रमिनमंदिरको बनाने वीर सेव गुरुकी भावानुसार पीतम्से मंडवाया था। इसकी गनी नागने मानस्लम बनायाापौष ग १ पुषपर सं० १९८५ को२-या , पृ. १५०-११२.२-२०, मा. ९१...१-०१.
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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