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________________ विजयनगरकी शासनानधर्म। १५ siniminimadindianiminishinnintendednewslimmemeबसिद ने गुरु बादी विधानरको प्रश्रय दिया था। साल मलिक मोर सालुन देवरायके राजमारोंमें वादी विधानंदने परवादियों से सफल बाद किया था। कृष्णदेखने उनके पादयोंकी पना की थी।' सीश रामानोंने विजयनगरके सासिंहासमा विकार किया पायह लिखा नाचुका है। गुरुराय और भैरवनरेश जैनधर्म प्रभावक थे। सन् १५२९६० के एक स्टेखसे स्पष्ट है कि सम यक शासनकालमें गुरुगय संगीतपुरम शामनसूत्र संभाले हुये थे। समका सम्बन्ध बेरसोप्पेके शासकोंसे था। मरेन्द्र गुरुगय भी अपने पूर्वजोंक अनुलत जैनधर्म के अनन्य भक्त थे। वह सत्रय धर्मपूजा--जिनपर्म पत्रको फागनेवाले ' र्णिम जिनमंनिग और मूर्तियों के निर्माता' और विनमंदिरों की शिविरों का स्वर्णकलशोको बढ़ानेवाले' कहे गये। इन विरुदों से उनकी जैनधर्मके प्रति श्रद्धा स्यं वक्त होरही है । इसी वंशके नौवनाशने भाचार्य वीरसनकी नासानुसार येणुपुरको त्रिभुवन चूडामणिसाती' की इतर वेके पत्र पाये थे। उनके गमगुरु पंडिआचार्य (बीसन ! ) थे और कुलदेव म. पार्धनाय थे। उनकी गनी नागदेवी मी जैन धर्मकी उपासिका थी। उन्होंने वहीं मंदिरके सामने एक सुन्दर मानस्थम बनवाया था। उनकी दो पुत्रियां लक्ष्मीदेवी और पंडितादेवी नामक बी। वे निन्तर जैन साधुनोंको दान दिया करती थी। भैरव मोश बम रोगपत हुये तो उससे मुक्त होने के लिए उन्होंने जिमनाके हेतु दान दिया। (-०. १. ११४-१८. २-मेगा. (MSS). ..
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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