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________________ ८८] संविधान विकास पार्नुअसीमे, नम्मेहल्लि इत्यादि स्थानोंके महान बेनधर्म - मक थे। यह सामन्तगण विजयनगर स्मारोंकी छान बनेर प्रान्तपर स्वाधीन शासन करते थे और समय २१ बाके किये युद्ध भार सम्मान प्राप्त करते थे। कोहल एवं काल के जन शासक। कोजलववंशके नरेशोंने जैनधर्मके लिये भूमिदान दिये थे, परन्तु जन्तमें वे भी वीरशैव धर्ममें मुक्त हुये थे। वीर शैव होने पर भी उन्होंने जैनोंको समसे देखा था। चंगनाडके चाय नरेश भी वीर शैव धर्ममें दीक्षित हुये थे; किन्तु फिर भी वे बैनधर्मको मुग । नसके! पालव नरेशोंने अपने स्वामी विश्वनगरके समाटोकी भार धर्मनीतिका जनुकाण किया था। उन्होंने नियों और पीर बोका परस्पर मेल करानेके सद् प्रयास किये थे। कहते है कि अपने इस प्रयास सफल हुये थे। जैनों और सैमें परम संबंध स्थापित हुये थे। उस समयके बने हुये ऐसे शिवलि मिले, दिन पर दिगम्बर जिन मूर्तियां बनी हुई है । उनको quida वीर शैयोंको विरोध था और नहीं ही बैनियोंको।' बाम नरेश चैनधर्म के पारीस चुके थे। एक चाम नरेश चिक हनसोगे स्थानपर त्रिकूटाच-जिन-पस्ती' नामक विनमंदिर मामा की। परेखों के समर्थका परी १- ०, मा. १ २ पृ.१५६. एवं मे०, पृ. १११. १ . ११५।-in.. मा.. .५१ मे १.१५.
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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