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________________ ४) संलित जैन इतिहास । पार की और वे दण्डकगिरिके पास जाकर ठहरे। वहां उन्होंने नगर बसाकर रहना निश्चित कर लिया था। इसका अर्थ यह होता है कि वे वहां अपना उपनिवेश स्थापित करके रहना चाहने थे । किन्तु वहां एक अघटित घटना घट गई। लक्ष्मणके हाथमे धोखेमें खरदूषण के पुत्र शम्बुकी मृत्यु होगई । खरदुषणने राम-लक्ष्मणसे युद्ध ठान दिय! । गवणका यह बहनोई था। उमने उसके पास भी सहायता के लिये समाचार भेज दिये । राम और लक्ष्मण नर-पुंगव थे। वे इस भापत्तिको देखकर जरा भी भयभीत नहीं हुये। गम युद्ध के लिये उद्यत हुये, परन्तु लक्ष्मणने उन्हें जाने नहीं दिया। वह स्वयं युद्ध लड़ने गये मोर कह गये कि यदि मैं सिंहनाद करूं तो मेरी सहायताको भाइये । राम और लक्षमण वीर पुरुष थे उनका पुण्य अक्षय था। स्वग्दषणका शत्रु विगधित उनकी सहायता करने के लिये स्वयं मा उपस्थित हुआ। खादृषण का माशा नरोला लंकाका राजा रावण था। रावणने तीनखंड पृथ्वीको जीतकर अपना पौरुष प्रगट रावण। किया था। वह बड़ा ही कर परन्तु पगक्रमी था। उसने अनेक विद्यायें सिद्ध की थी। कह गबस नामक विद्यापक राजवंशका पाणी था। ममुग्संगीत नगरके राजा मयकी पुत्री मन्दोदरी रावण की पटरानी थी। गवणने दिग्विजयमें दक्षिणमारतके देशोंको भी अपने भाषीन बनाया था। रावणके सहायक हेहब, टंक, किहिकध, त्रिपुर, मलय, हेम, कोल मादि देशोंके राजा थे। रावण अपनी दिग्विजय विंध्याचलपर्वतसे
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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