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________________ १०८] संलित जैन इतिहास । नगर मान्ध्र गज्यके अंतर्गत थे। मान्छोंकी सेनामें एक लाख प्यादे, दो हजार सवार और एक हजार हाथी थे । युनानी लेखकोंने हमें एक बलवान शासक लिखा है । अशोकके मरते ही इन्होंने अपने गज्यको बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया और सन २४० या २३० ई० पूर्वक लगभग पश्चिमी घाट पर गोदावरीके उद्भव मीर नामिकनगर उनके गज्यमें मम्मिलित होगया। धीरे-धीरे सरक्षक्षिण प्रदेश पर समुद्रमे समुद्र पर्यन्त उनका राज्य होगया ।' कहने हैं, मगधको भी मान्धीने, खारवेल के साथ जीत लिया था। कलिङ्गक जैन मम्राट खारवेलने आन्ध्र सम्राट् श तकर्णीको पगात किया था।' इमीमे अनुमानित है कि मगधविनय में वह स्वारवेल के माथ रहे थे। उनके समयमें पश्चिमकी ओरमे शक-छत्रपोंके पाकमण भारत पर होते थे । बान्धोंने उनसे बचने के लिये अपनी राजधानी महाराष्ट्र के हृदय प्रतिष्ठान (पैठन में स्थापित की थी। इनका पहला राजा सिमुक या मिन्धुक नामक था। इनका सारा राजत्वकाल करीब ४६० वर्ष बताया जाता है, जिसमें इनके तीस राजाओंने राज्य किया था। इस वंशके राजाओंमें गौतमी पुत्र शातकणि नामक राजा प्रख्यात था। नामिकके एक शिलालेगौतमीपुत्र शातकर्णि। बमें उसे गिजागिन' और अशिक, अश्मक मूलक सुगष्ट. कुकुर, अमान्त, अनृप, विदर्भ और मकरावन्ती नाम देशों पर सामन करने लिखा १-गैब०, पृ. १५४-१७२ । २-कुऐई., पृ० १५ । ३-जवि. बोलो., मा० ३ पृ. ४४२। -गमा०, पृ. १९।
SR No.010475
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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