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________________ - मौर्य साम्राज्य । [२२७ एक लकड़ीकी दीवार थी। इसमें ६४ फाटक और ६७० मीनार थे। इसके बाहर २०० गज चौडी और १५ गन गहरी खाई थी, जो सोनके जलसे भरी रहती थी। वर्तमान पटना नगरके नीचे यह प्राचीन पाटलिपुत्र तुपा पड़ा है। बांकीपुरके निकटमें खुदाई करनेसे चंद्रगुप्त के राजप्रासादका कुछ अंश मिला है। यह रानभवन भी लकड़ीका बना हुमा था, परंतु सनधन और सुंदरतामें किसी राजमहलसे कम न था। राज्यके शासन-प्रबन्धक समान ही नगरका प्रवध एक म्युनिसिपल कमीशन द्वारा होता था। इसमें भी छै पंचायतें थीं और प्रत्येक पंचायतमें पांच सदस्य इनके द्वारा देश और नगरका सुचारु और आदर्श प्रबंध होता था। चन्द्रगुप्तका शासन प्रवन्ध आनझलके प्रजातंत्र राज्यों के लिये शासन प्रबन्धकी एक अनुकरणीय मादर्श था। आजालकी विशेषतायें। म्युनिसिपिल कमेटियोंसे यदि उसकी तुलना की जाय, तो वह प्राचीन प्रबन्ध कई बातो अच्छा मालम देगा। चन्द्रगुप्तके इस व्यवस्थित शासनमें प्रत्येक मनुष्य और पशुसकी रक्षाका पूरा ध्यान रखा जाता था। कौटिलपके अर्थशास्त्रमे पशु ओके भोजन, गौओंके दुहने और दूध, मक्खन आदित्री स्वच्छता के सम्बंध, नियम दिये हुये मिलते हैं । पशुओंको निर्दयता और चोरीसे बचाने के नियम सविस्तर दिये गये हैं। एक जैन सम्राटके लिये ऐसा दयालु और उदार प्रबंध करना सर्वथा उचित है। मनुष्यों की रक्षाका भी पूरा प्रबंध था। व्यापारियो के लिये कई मड़कें वनवाई गई थीं, जिनपर मुसाफिरोकी रक्षाका पूरा प्रबन्ध था। १-मेएइ० । २-लामाइ० पृ. १६७ । -
SR No.010473
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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