SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०२] संक्षिप्त जैन इतिहास ।। उससमय सिकन्दरको यह दृश्य मर्ममेदी प्रतीत हुआ तो भी उसने अपनी भक्ति दिखानेके लिए अपने सभी रणवाद्य बनवाये और सभी सैनिकों के साथ शोसुचक शब्द किया तथा हाथियोंसे भी चिंघाड करवाई | सिकन्दर उनके निकट मिलने के लिये भी आया; किंतु उन्होंने कहा कि "मैं भभी मापसे मुलाकात करना नहीं चाहता; अब शीघ्र ही आपसे मुझे भेंट होगी। इस कथनका भावार्थ उस समय कोई भी न समझ सका। परन्तु कुछ समयके बाद जब सिकन्दर कालकवलित होने के सम्मुख हुमा तो म० कलॉनसके इस भविष्यद्वक्तुत्व शक्तिकी याद सबको होमाई। उस चिताकी धधकती हुई विकराल ज्यालामें महात्मा फलोनसका शरीरान्त होगयाथा। इन जैनमुनिने विदेशियोंके हृदयोंपर कितना गहरा प्रभाव जमा लिया था, यह प्रकट है। सचमुच यदि वह युनान पहुंच जाते तो वहांपर एकवार जैन सिद्धांतोंकी शीतक और विमल जान्हवी बहा देते ! ( १-म० फलॉनसके भविष्यद्वक्स के इस उदाहरणसे उनको अपने "अंतिम समयका ज्ञान हुमा मानना कुछ अनुचित नहीं जचता और वह' चितापर ठीक उसी समय बैठे होंगे; जिस समय उनके प्राण पखेक इस नश्वर शरीरको छोडने लगे होंगे । २-जैसि मा०, मा० १ कि. पृ. ७.
SR No.010473
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy