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________________ ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर। [७६ वे उन सबपर विजयी हुये थे और उन्होंने सर्वज्ञ होकर 'विजयधर्म' प्रतिपोषित करने का उच्च निनाद किया था। केवलज्ञान प्राप्तिकी महत्वपूर्ण घटनाके विषयमें सहा गया है कि एक 'सुव्रत' नामक दिनको अजुकूला मथवा ऋजुपालिका नदीके वामतटपर जम्भक नामक ग्रामके निकट पहुंच कर, अपराहक समझ अच्छी तरहसे षष्ठोपवामको धारण करके सालवृक्षके नीचे एक चट्टानपर आसन जमाकर महावीरजीने वैशाष शुक्ला दशमीके तिथिमें सर्वज्ञपदको प्राप्त किया था। इस समय उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र और विजयमुहूर्त थी। जिस स्थानपर भगवानने केवलज्ञानकी विभूति पाई थी, वह स्थान सामाग नामक रुषकके खेतमें था और एक प्राचीन मंदिरसे उत्तर पूर्वकी ओर था। वहां महावीरजी सर्वज्ञ हुये और परम वंदनीय परमात्मा होगये थे। वह शुद्ध बुद्ध चतन्य स्वरूप सशरीर ईश्वर अथवा पूज्य अहंत या तीर्थकर हुये थे। समस्त लोकमें आनंदछागया और देवोंने भाकर उस समय आनंदोत्सव मनाया था। आज स्पष्टरूपमें यह विदित नहीं है कि भगवान महावीरका भगवान महावीरको केवलज्ञान स्थान कहांपर है? भगवान के केवलज्ञान-स्थान। जन्म व निर्वाणस्थानोंके समान जैन समानमें किसी भी ऐसे स्थानकी मान्यता नहीं है कि वह केवलज्ञान प्राप्तिका पवित्र स्थान कहा जासके । जयपुर रियासतके चांदनगांवमें एक नदीके निकटसे भगवान महावीरनीकी एक बहुमाचीन मूर्वि भूगर्भसे उपलब्ध हुई थी। वह मूर्ति वहींपर एक विशाल मंदिर १-उपु० पृ. ६४ व Js. I, 201, २-आचाराr Js. I, pp. 20/57. - -
SR No.010473
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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