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________________ १४] संक्षिप्त जेन इतिहास। विदेह देशवासी क्षत्रियोंका गणराज्य भी उस समय रछेखनीय था। यह लिच्छिवियोंके साथ वृनि प्रमातंत्र-राज्यसंघमें सम्मिलित थे, यह लिखा नाचुका है । दिगम्बर जैनशास्त्रों में भगवान महावीरकी जन्मनगरीको विदेह देशमें स्थित बतलाया है।' और श्वेताम्बरी शास्त्र महावीरनीको विदेहना निवासी अथवा विदेहके राजकुमार लिखते हैं। इन उल्लेखोंसे भी विदेह गणराज्यका वृनि-रान-संघमें सम्मिलित होना सिद्ध है। यदि विदेहका सम्पर्क इस राजसंघसे न होता तो बंगालीके निकट स्थित कुण्डग्रामको विदेह देशमें न लिखा जाता। अस्तु, विदेहमें जैनधर्मकी गति विशेष थी। भगवान महावीरने तीस वर्ष इसी देशम मिताये थे। विदेहकी राजधानी मिथिला पेशालीसे उत्तर पश्चिमकी भोर ३५ मील थी और वह व्यापारके लिये बहु प्रख्यात थी। इनके अतिरिक रायगामा कोल्पिगणराज्य, सुन्समार पर्वतका भगा राजसंघ, मल्लकप्पका बुलि प्रजातंत्र राज्य, पिप्पलिवनका मोरीयगणराज्य आदि अन्य कई छोटे मोटे प्रजातंत्रात्मक राज्य थे; जिनका कछ विशेष-हाल मालम नहीं होता है। ' १० पु०, ४० ६०५ । २-J. I, 256. ३-क्षत्री कैन्स, . पृ०
SR No.010473
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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