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________________ संक्षिप्त जैन इतिहास। राजा-महाराजा भी सारे देशपर अपना माधिपत्य फैलाना मावश्यक समझते थे। साराशतः प्राचीनकालसे ही भौगोलिक दृष्टिसे सारा देश एक ही समझा जाता रहा है। अब भी यह बात ज्योंकी त्यों है। भारत एक देश है और उसकी मौलिक एकताका भाव यहाँक निवासियोंमें सदा रहा है। किन्तु इस मौलिक एकताके होते हुये भी, जिस प्रकार वर्तमानमें भारत भनेक प्रान्तोंमें विभक्त है, उसी प्रकार भगवान महावीरजीक समयमें भी बंटा हुआ था। इस समय और उस समयके भारतकी राजनैतिक परिस्थितिमें बड़ा भारी अंतर यह था कि भाज समूचा भारत एक साम्राज्यके अन्तर्गत शासित है, किन्तु उस समय यह देश मिन्नर राजाभोंके माधीन अथवा प्रजातंत्र संघोंकी छत्रछाया था। हां, अशोक मौर्यके समय अवश्य ही प्रायः सारा भारत उसके आधीन होगया था। म. गौतमबुद्धके जन्मके पहिलेसे भारत सोलह राज्यों में तत्कालीन मुख्य विभक्त था किन्तु जैनशास्त्र बतलाते हैं कि राज्य। इन सोलह राज्योके मस्तित्वमें आनेके नरा ही पहिले सार्वभौम चक्रवर्ती सम्राट् ब्रह्मदत्तके समयमें भारत साम्राज्य एक था और उसकी राज्य व्यवस्था सम्राट ब्रह्मदत्तके आधीन थी। सम्राट् ब्रह्मदत्तका घोर पतन उसके अत्याचारों के कारण हुमा और उसकी मृत्यु के साथ ही भारत साम्राज्य तितर-वितर होकर निनलिखित सोलह राज्योंमें बंटगया:-- (१) अङ्ग-राजधानी चम्पा; (२) मगध-राजधानी रानगृह; (३) काशी-11. पा० बनारस (8) कौशल (माधुनिक नेपाल)रा. श्रावस्ती (5) वजियन-रा. वैशाली () मड-रा० पावा
SR No.010473
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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