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________________ ६२] संक्षिप्त जन इतिहास। राजा विक्रमादित्य इस नामके राजाका तब कोई उल्लेख नहीं गौतमीपुत्र शातकर्णि। मिलता है। वास्तवमे विक्रमादित्य कार्ड खास नाम न होकर केवल उपाधि मात्र है। इस अपेक्षा उस समयके इतिहासमे इस नामका कोई राजा न मिलना कुछ अनोखापन नहीं रखता । अत. आवश्यक है कि तत्कालीन राजाओंमे ऐसे किसी वीर और पराक्रमी राजाका पता चलाया जाय, जो विक्रमादित्य उपाधिका अधिकारी होसके। इस अपेक्षा अब प्रायः सब ही विद्वान इस समय एक विक्रमादित्य राजाका होना स्वीकार करने लगे है। जैन गाम्म्र कहते है कि वह गर्दभिलका पुत्र था । और प्रतिष्ठानपुरसे आकर उसने शकोंको परास्त करके भारतका विदेशी लोगोंसे उद्धार किया था। जैन, अजैन एवं गिलालेखीय आधारसे मम० कागीप्रसाद जायसवाल इस परिणामपर पहुंचे है कि यह विक्रमादित्य प्रतिष्ठानपुरके आन्ध्रवंशका गौतमीपुत्र शातकर्णि नामका प्रसिद्ध राजा था। 'गाथासप्तगती' के कर्ता राजा हालने (ई० सन् २१) एक गाथामे विकमाउच्च (विक्रमादित्य) की दानशीलताका वर्णन किया है। इस उल्लेखसे विक्रमादित्य उपाधिधारी राजाका-उनसे पहले होजाना सिद्ध है। वस्तुतः आन्ध्रवंशमे गौतमीपुत्र गातकर्णि हालसे पहले होचुके थे। उनका समय ई० पूर्व १००-४४ है। जैन शास्त्र विक्रमादित्यको प्रतिष्ठानपुरसे आया बताते ही है और उनकी जीवनघटनायें भी गौतमीपुत्र शातकर्णिके जीवनसे मिलती है। इस कारण उन्हें गौतमीपुत्र शातकर्णी मानना ठीक १-कैहिंइ०, भा० १ पृ० १६७-१६८, मलाहाबाद यूनीवर्सिटी स्टडीज, भा० २ पृ० ११३-१४७. -
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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