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________________ आभार । hmon " " संक्षिप्त जैन इतिहास " के सरे भागका यह दूसरा वण्ड “पाठकोंके हाथमे देते हुए हमे हर्ष है। ऐसा करनेमे हमारा एकमात्र उद्देश्य ज्ञानोद्योत करना है । इसलिए हमे विश्वास है कि पाठकगण हमारे इस सदप्रयास से समुचित लाभ उठावेंगे और भारतीय जैनोंके पूर्व गौरवको जानकर अपने जीवनको समुन्नत बनानेके लिए उत्साहको ग्रहण करेंगे । इस ग्रन्थनिर्माणमे हमे बहुतसे साहित्यकी प्राप्ति और सहायता हमारे मित्र और इस ग्रंथके सुयोग्य प्रकाशक श्रीयुत सेठ मूलचंद किसनदासजी कापडिया अध्यक्षगण, श्री इम्पीरियल लायब्रेरी कलकत्ता और जैन ओरियटल लायब्रेरी आराम हुई • जिसके लिये हम उनका आभार स्वीकार करते है । प्रूफ-संशोधन आदि कार्य कापडियाजीने स्वय करके जो हमारी सहायता की है, - वह हम भूल नहीं सक्ते । उसके लिये भी कापड़ियाजी धन्यवादके • पात्र है । श्रीमान् साहित्याचार्य पं० विश्वेश्वरनाथजी रेड, एम० आर० ए० एस ०, क्यूरेटर, सरदार म्युजियम - जोधपुर ने इस खंडकी भूमिका लिखने की कृपा की है, हम उनके इस अनुग्रहके लिये उपकृत है। इतिहासके प्रस्तुतः खमे हमने वर्णितकालकी प्राय सब ही मुख्य घटनाओं को प्रगट करनेका प्रयत्न किया है । ऐतिहासिक >
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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