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________________ ५४] संक्षिप्त जैन इतिहास । ब्राह्मणवर्णकी थी और उसके पुत्र उसके जीवनकालमे ही स्वर्गवासी होगये थे। फलत. उसके पौत्रका नन्हा वालक होना उचित है। खारवेलके शिलालेखसे यह प्रकट ही है कि बाल अवस्थासे ही कलिंगराज्यका भार उनपर आगया था। उपरोक्त पुस्तकोंके अतिरिक्त उडियाके “ मदल पनि " (Madal Panji) नामक ग्रन्थमे भी उडिया ग्रन्थोंमें खारवेलका वर्णन भोज नामसे हुआ अनुमान खारवेल। किया जाता है। इस ग्रन्थसे राजा भोजके राज्यका प्रारम्भ ई० पूर्व १९४से प्रमाणित होता है और खारवेल ई० पूर्व १९२ मे युवराज हुए थे। संभवत. भोज नामकी प्रसिद्धिके कारण अथवा खारवेलके विरुद्ध भिक्षुराजके अपभ्रंश (भोजराज) के रूपमे यह नाम उक्त ग्रन्थमें खारवेलके लिये लिखा गया है। उक्त ग्रन्थसे प्रगट है कि खारवेल एक वीर, पराक्रमी, उदार, न्यायशील और दयालु राजा थे। उनके दरवारमें ७५० प्रसिद्ध कवि थे, जिनमे मुख्य कालीदास थे। उनके रचे हुये । चनक और महानाटक नामक ग्रन्थ थे। महानाटकका प्रचार कहीर अब भी ओडीसामे मिलता है । खारवेलके द्वारा नावों, चरों और गाड़ियोंका प्रचार पहले२ कलिझमे हुआ था। उन्होंने सारे भारतवर्षपर विजय प्राप्त की थी। सब ही राजाओंको अपना करद बना लिया था। सिन्धु देशके यवनोंको भी खारवेलने मार भगाया था। ' सारला महाभारत' नामक उडिया काव्यमे भी खारवेलका वर्णन १-जविओसो०, भा० १६ पृ० १९४-१९६ । २-जविमोसो०, भा० १६ पृ० २११-२१५ ।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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