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________________ ४६] संक्षिप्त जैन इतिहास । ममा और धर्मात्मा होना स्वाभाविक है । वे प्रेमालु श्री, उदार थीं और शीलसम्पन्ना थीं। उन्होने भी भव्य जिनमदिरोंको वनवाया था ! खाग्वेलको उन गनियोमे कितनी संतान पानेका सौभाग्य प्राप्त हुआ, यह कहा नहीं जासकता । कितु वह उनके समान सुयोन्य सह धर्मिणियोंको पाकर एक आदर्श श्रादक बने थे. इसमे संशय नहीं । वजिग्घरवाली रानीके कोखमे जो पुत्र हुआ था, वही संभवत खारवेलके बाद कलिङ्गका राजा हुआ था। खारवेलका धार्मिक जीवन अनूठा था। जब वह अपनी दिग्वि. जय पूर्ण कर चुके और सारे भारतवर्षमे उनकी खारवेलके जैनधर्म धाक जम गई, तब उन्होंने विशेष रीतिसे प्रभावनाके कार्य। धर्मानुष्ठानके कार्य किये थे। यह उनके राज्यके तेरहवें वर्ष अर्थात् सन् १७० ई० पू०की बात है। सम्राट् खारवेल कुमारी पर्वत (उदयगिरि) के अर्हत् मंदिरमें जाकर विशेप भक्ति और व्रत उपवास करनेमे उत्तचित्त हुये थे। इस प्रकार व्रत और उपवासमे लीन होनेका फल यह हुआ था कि वह अपने भवभ्रमणको नष्ट करनेके निकट पहुंच गये थे, क्षीणससृत हुये थे। श्रावकोंके व्रतोका पालन उन्होंने सफ लतापूर्वक कर लिया था (रत-उवास-खारवेल-सिरिना)। फलतः ' उन्हें जीव और देहकी भिन्नताका प्रत्यक्ष अनुभव होगया था। भेद. विज्ञानको उन्होंने पालिया था और यह संसारका नाश करनेके लिये पर्याप्त है । अतएव सम्राट् खारवेलको जो धर्मराज और भिक्षुराज कहा गया है, वह बिलकुल ठीक है । कुमारी पर्वत संभवतः भगवान
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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