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________________ ४२] संक्षिप्त जैन इतिहास । वेलने जैनधर्मकी इस हीनप्रभाको द्युतिमान् वना दिया । जैन धर्मका पुनरुद्धार होगया । कलिगमे तो वह बहुत दिनो पहलेसे राष्ट्रीय वर्म होरहा था। किन्तु जैन धर्मको उस समय तक केवल एक दर्शन सिद्धान्त मानना कुछ जीको नहीं लगता । ब्राह्मण वर्ण जैन धर्ममें भी है । अत जिन ब्राह्मणोंको खारवेलने भोजन कराया था उनका जैन होना बहुत कुछ संभव है। कल्पवृक्ष जैनगात्रोमे मनवाछित फलको प्रदान करनेवाले माने गए है । खारवेल भी अपनी प्रजाके लिये कल्पवृक्षके समान सब कुछ प्रदान करके महान् उदार और प्रजावत्सल बनना चाहता था। इसीलिये उन्होने कल्पवृक्षका. दान किया था । करुणाभावसे सब प्राणियोको दान देना जैन धर्म उचित बतलाता है । जैन शास्त्रोंमे क्षत्री साधुओका विशेष उल्लेख. मिलता है। खारवेलके समय वह एक प्रख्यात् साधु समुदाय होरहा. था। खारवेल जैनधर्मावलम्बी था, परन्तु वैदिक विधानानुसार उसका महाराज्याभिषेक हुआ और उसने राजसूय-यज भी किया था । इससे यह बिल्कुल स्पष्ट है कि तब जैन धर्ममे साम्प्रदायिक कट्टरता इतनी नहीं थी कि वह प्राचीन राष्ट्रीय नियमोंके पालनमे बाधक होता। खारवेल प्रजाहितैषी राजा थे। वह नहीं चाहते थे कि वह एक स्वाधीन राजाकी तरह शासन करें और । खारवेलका राज्य प्रजाको पराधीनताका कटु अनुभव चखने दें। । प्रबंध। इसीलिये उन्होंने 'जनपद' और 'पौर' संस्थायें स्थापित की थीं। यह संस्थायें आजकलकी म्यून्सिपल और डिस्ट्रिक्ट बोर्डोके समान थीं। 'पौर' संस्था पुर अथवा राजधानीकी संस्था थी। जिसके परामर्शसे वहाका शासन
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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