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________________ सम्राट् खारवेल | [ ३९ मात्र छोड वहाने निकल गया । खारवेल गोरथगिरिको विजय करके वापस कलिङ्ग लौट आये। यह घटना उनके राज्य के सातवें वर्पमे हुई थी ! कलिङ्ग लौटकर खारवेलने अपने राज्यके नवे वर्षमे खूब दान-पुण्य किया । इस दान पुण्यका पूरा वर्णन तो नहीं मिलता. किन्तु यह ज्ञात है कि उन्होने मोनेका कल्पवृक्ष और हाथी, घोडे. रथ आदि अनेक वस्तुऐं दान कीं थीं। इस दान-कर्म में उन्होने बाणोको भी संतुष्ट किया था | अर्हत् भगवानका अभिषेक और पूजा विशेष समारोहके साथ किये थे । अडतालीस लाख चांदी के सिक्कोंको खर्च करके उन्होने प्राची नदीके दोनों तटोंपर एक 'महाविजय' नामक विशाल प्रासाद बनवाया था। उक्त प्रकार धर्मध्यान और जन-रञ्जनमे एक वर्ष व्यतीत करके खारवेलने अपने राज्यके दशवें वर्ष में खारवेलका भारतपर 'भारतवर्ष' ( Upper India ) पर धावा आक्रमण । बोला था । इस आक्रमणमे खारवेलने किस राजाको पराजित किया, यह तो विदित नहीं, किन्तु यह स्पष्ट है कि वह अपने उद्देश्यमे सफल हुये थे । उपरान्त कलिङ्ग लौटकर उन्होंने ग्यारहवें वर्षमें अपनेसे पहले हुये एक दुष्ट राजा द्वारा निर्मित राजसिहासनको बडे२ गधोसे जुते हुये हलोंको चलवाकर नष्ट करा दिया और तबसे ११३ वर्ष पहलेकी बनी उसकी ताम्रमूर्तिके टूक- ट्रक करा दिये ! मालूम होता है कि उक्त दुष्ट राजाने जैन धर्मकी अप्रभावना की थी । इसीलिये उनके चिन्हों को रहने देना खारवेलने उचित नहीं समझा था । 1 खारवेलका दान व अर्हत्-पूजा |
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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