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________________ P RED HANI HO - भूमिका भर õuduntasuno कुछ समयमे जैन संप्रदायके कई विभागोंमें अहिंसावादने ऐसा श्रान्त रूप धारण कर लिया है कि लोगोंकी दृष्टिमे वह उपहामास्पद होरहा है। इसी भ्रमको दूर करनेके लिये यह • संक्षिप्त जैन इतिहास" लिखा गया है। इमे हम उक्त संप्रदायझी जागृतिका शुभ लक्षण अनुमान करते है। यद्यपि " संक्षिप्त जैन इतिहास" के इस खण्डमे प्रामाणिक ऐतिहासिक सामग्रीके साथ साथ 'जैन कथाओ' और 'जनश्रतियों का उपभोग किये जानेसे अनेक स्थलोंपर मतभेद होने की सम्भावना भी होसकती है, तथापि इसमे इतिहास-प्रेमियोंके और विशेषकर जैन संप्रदायके अनुयायियोंके मनन करनेके लिये बहुत कुछ सामग्री उपस्थित कीगई है। इसके अलावा इसकी लेखनशैली भी संकुचित साप्रदायिकताकी मनोवृत्तिसे परे होनेके कारण समयोपयोगी और उपादेय है। हम, इस सुन्दर संक्षिप्त इतिहासको रिखकर प्रकाशित करनेके लिये, श्रीयुत बाबू कामताप्रसादजी जैनका हृदयसे स्वागत करते है। इस इतिहासके पूर्ण होनेपर हिन्दी भाषाके भंडार में एक ग्रन्थरलकी वृद्धि होने के साथ ही जैन संप्रदायका भी विशेष उपकार होगा। आशा है इस इतिहासके द्वितीय संस्करणमे इसकी भाषाको और भी परिमार्जित करनेका प्रयत्न किया जायगा। आकियालाजिकल डिपार्टमेंट,। विश्वेश्वरनाथ रेउ। जोधपुर।
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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