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________________ उन्डो वैक्ट्रियन और इन्डो पार्थियन राज्य। [२९ नये शक मंवतका अस्तित्व बतलाना कुछ जीका नहीं लगता। दूसरी शकविजयके उपलक्षमे उसका चलना उपयुक्त है। दोनो ही विजय शातकर्णी वंशके राजाओं द्वारा भारतरक्षाकी महान विजय थींः इसी कारण हिन्दू जनताने दोनों ही कोंका उपयोग एकसाथ किया । हिंदू पण्डितोंमें विक्रम संवत्के साथ शक सालिवाहन संवत् लिखनेका एक रिवाज है और यह इस बातका. जैन गाथाओंका प्रमाण है कि दोनों 'संवतोंका सम्बन्ध भारशकराजा नहपान । तीय राजाओंमे था न कि एक विदेशी . राजामे भी । जैन गाथाओंका कगजा इस अपेक्षा गक शालिवाहन संवत्के प्रवर्तकसे कोई भिन्न पुरुप होना चाहिये । वह भिन्न पुरुष नहपान था । यह बात हम प्रथम खण्ड (पृ० १६२') में लिख चुके हैं। त्रिलोक प्रज्ञप्तिके उल्लेखानुसार उसका समय वीरनिर्वाणसे ४६१ अथवा ६०५ वर्षबाद होना प्रमाणित है। यदि वीर नि०से ४६१ वर्ष बाद उसको मानाजाय तो उसके होनेका समय ई० पूर्व ८४ (५४५-४६१) आता है। प्राचीन शक संवत्में नहपानका समय गिननेसे वह ई० पूर्व ८२ के लगभग बैठता है । इस दशामें 'त्रिलोकप्रज्ञप्ति', का उक्त मत तथ्यपूर्ण प्रतिभाषित होता है। किन्तु इस अवस्थामें नहपानका राज्यकाल जो ४२ वर्ष बताया जाता है, उसमें भुमकका राज्य काल भी सम्मिलित समझना चाहिये । इस मतकी सार्थकताको देखते हुए शक राजाको वीर नि० से ६०५ वर्षे बाद मानना ठीक नहीं दिखता। मालम होता है कि सन् ७८ को शोंके सम्बन्धसे १-जविमोसो० भा० १६ पृष्ठ २५०. - -
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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